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अभिनव उद्योग

हमारे लक्ष्य

1. राजस्थान के औद्योगिक उत्पादन को पाँच वर्षों में दुगना करना।
2. प्रदेश के कस्बों एवं गांवों के निवासियों की आमदनी को पाँच वर्षों में पाँच गुना बढ़ाना।
हमारे उद्देश्य
1. राजस्थान में उत्पादन बढ़ा कर यहाँ के नागरिकों की आमदनी बढ़ाना,
       ताकि वास्तविक विकास से उनके जीवन स्तर में सुधार हो सके।
2. स्थानीय उपादान से प्रदेश से बाहर जाती पूँजी के बहाव को कम करना ,
       तभी पूँजी का निर्माण यहाँ हो पायेगा।
3. प्रदेश से बाहर जाने वाले कामगारों को रोकना,
       जिससे वे यहीं रहकर अपनी कला की उचित कीमत पा सकें।
4. बेरोजगारी को कम करना,
       ताकि समाज में निराशा कम हो।
5. गांवों में रोजगार बढ़ाकर शहरों पर जन दबाव कम करना,
       जिससे शहरी करण की अवांछित समस्याएँ कम हो सकें।

इसके लिए हम ये आवश्यक परिवर्तन करेंगे
1. गाँव और कस्बों के कामगारों की सामाजिक कुरीतियों को कम करेंगे,
                   इन पर हो रहा अनावश्यक खर्च कम होने पर ही बढ़ी आमदनी का कोई अर्थ रहेगा।
2. प्रदेश की योजना एवं बजट में लघु और कुटीर उद्योगों को वास्तविक रूप से प्राथमिकता देंगे,
                    क्योंकि राजस्थान में बड़े उद्योगों के लिए स्थितियाँ अनुकूल नहीं हैं।               
3. संभाग स्तर पर योजनाएं बनायेंगे,
                 इससे प्रकृति सम्मत उद्योग स्थाई विकास का मार्ग प्रशस्त करेंगे।
4. छोटे एवं कुटीर उद्योगों की उत्पादन लागत कम करेंगे,
                कच्चे माल, डिज़ाइन, मशीन और तकनीक में मदद करेंगे।
5. उत्पादों का उचित मूल्य उद्यमियों को दिलवाएंगे,
               इसके लिए उनको मार्केटिंग में मदद करेंगे।

हमारी रणनीति
1. प्रदेश के उद्योग विभाग के अधिकारियों के साथ मुख्यमंत्री एवं उद्योग मंत्री उत्पादन बढ़ाने के तरीकों पर सघन विचार विमर्श करेंगे।
2.प्रदेश के छोटे उद्योगपतियों से संभागवार चर्चा कर उनको योजना बनाने में भागीदार एवं जिम्मेदार बनायेंगे।
3. राजस्थान के पारम्परिक कामगारों के महासम्मेलन करवाएंगे, ताकि एक परिवार की तरह प्रदेश को आगे बढ़ाने पर सहमति बन सके। सुथारों, कुम्हारों, सुनारों,दर्जियों, लुहारों, मोचियों, ठठेरों, जुलाहों, बुनकरों, रंगरेजों, छीपों,मीनाकारों, मनिहारों, मूर्तिकारों, तेलियों आदि के सम्मेलनों में अभिनव उद्योग के लिए उनकी अपनी रणनीति बनवाई जायेगी। थोपी हुई रणनीतियां आज तक निरर्थक रही हैं।
4. शासन की सक्रिय भूमिका रहेगी और इस तर्क को दरकिनार रखा जायेगा कि निजीकरण के युग में शासकीय दखल का अब कोई अर्थ नहीं रह गया है। भारत और राजस्थान के लिए यह तर्क घातक है, जो शोषण, सामाजिक-आर्थिक असंतुलन और बेरोजगारी बढ़ा रहा है। अभिनव शासन तो  छोटे उद्यमियों और बाजार के बीच में खड़ा रहेगा। शासन का भाव यह रहेगा कि अगर राजस्थान का उत्पादन बढ़ता है, तो शासन की भी आमदनी बढ़ेगी और बाहरी उधार से राहत मिलेगी। इसके लिए शासन बड़े पैमाने पर राजस्थान नवनिर्माण कोष से छोटे उद्योगों की मदद के लिए कच्चे माल, मशीन,तकनीक, विपणन और विज्ञापनों पर खर्च करेगा। पुरानी विफलताओं के तर्क को झुठलाया जायेगा क्योंकि उनके लिए व्यवस्था नहीं व्यक्ति जिम्मेदार थे। प्रदेश के सहकारी ढाँचे को इसी लिये फिर से सक्रिय किया जायेगा, जो स्थानीय स्तर पर माल की खरीद और बेचान में मदद करेगा और जिला एवं संभाग स्तर पर शानदार मॉल्सका संचालन करेगा।
5. शिक्षा व्यवस्था और उद्योगों को फिर से जोड़ा जायेगा, जिससे शिक्षा भी सार्थक बन सके, रोजगारोन्मुखी बन सके और उद्योगों को भी नवाचारों का लाभ मिल सके।
प्रशासनिक ढाँचा
 
          उद्योग मंत्री
          महानिदेशक (उद्योग)-  प्रदेश स्तर पर
          अतिरिक्त महानिदेशक (उद्योग) संभाग स्तर पर
          निदेशक (उद्योग) जिला स्तर पर
          सहायक निदेशक (उद्योग) विकास खंड (पंचायत समिति स्तर) पर
यह भी होगा

1. कोई निगम नहीं होगा- न रीको , न सीड्को, न आर एफ सी, न रुडा
2. वित्त व्यवस्था विकास खंड स्तर पर ही रहेगी, ताकि इन उद्योगों पर खर्च से होने वाले लाभ और प्रगति को प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सके।
3. उत्पादन की वृद्धि ही एक मात्र आकलन होगा, न कि प्रोत्साहन के लिए खर्च की गयी रकम।
4. उद्योग विभाग के महानिदेशक से सहायक निदेशक स्तर के सभी अधिकारी उद्योग सेवा से ही होंगे। इनकी अपनी सलाहकार परिषदें होंगी, जिनमें छोटे उद्योगपति होंगे।

वर्तमान स्थिति
1. प्रदेश का उद्योग लगभग ठप्प सा पड़ा है। उद्योगों की विकास दर भी 3 प्रतिशत से भी कम है।
प्रदेश के बाजार बाहर से उत्पादित वस्तुओं से भरे पड़े हैं, जिससे पूँजी का एक तरफा बहाव प्रदेश से बाहर की तरफ हो रहा है। पेन, पेन्सिल, चाय, शक्कर,कपड़े, जूते, कप, ग्लास से लेकर मोबाइल, कंप्यूटर आदि 95 प्रतिशत से अधिक वस्तुएँ प्रदेश या देश के बाहर से आ रही है। इससे प्रदेश में पूँजी निर्माण की स्थिति नहीं बन पा रही है।  
2. योजना में यह केवल कहा जा रहा है कि छोटे उद्योगों पर ध्यान देंगे, क्योंकि वे अधिक लोगों को रोजगार दे सकते हैं, परन्तु योजना राशि का केवल 1 प्रतिशत ही उद्योग क्षेत्र पर खर्च कर उत्पादन क्षेत्र का मखौल उड़ाया जा रहा है। शासन की कोई रुचि छोटे उद्योग में नहीं है। नेता और अफसर बड़े उद्योगों और निजी निवेश के भरोसे पर अपने कारणों से बैठे हैं और बड़े उद्योगपति अपने तरीकों से केवल यहाँ के संसाधनों के शोषण की जुगत में हैं।
3. निगम केवल ऐश-मौज के काम आ रहे हैं। औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने में उनका योगदान कहीं भी दिखाई नहीं दे रहा है।
4. कामगार बड़ी संख्या में राजस्थान से बाहर जा रहे हैं। जो कामगार कस्बों और गांवों में रह गए हैं, वे भी अपने धंधे बंद कर रहे हैं। वहीं शिक्षण एवं तकनीकी संस्थानों का भी छोटे और कुटीर उद्योग से सम्बन्ध कट गया है। परिणाम के रूप में बेरोजगारी सर्वत्र बिखरी पड़ी है।

About Dr.Ashok Choudhary

नाम : डॉ. अशोक चौधरी पता : सी-14, गाँधी नगर, मेडता सिटी , जिला – नागौर (राजस्थान) फोन नम्बर : +91-94141-18995 ईमेल : ashokakeli@gmail.com

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One comment

  1. Nice post. I will like to counter a point though:

    You said: गाँव और कस्बों के कामगारों की सामाजिक कुरीतियों को कम करेंगे,इन पर हो रहा अनावश्यक खर्च कम होने पर ही बढ़ी आमदनी का कोई अर्थ रहेगा।

    Almost impossible. One practice which is a social malaise for you may not be a for some other. For instance, On Diwali many people recommend that we should not burst crackers because of noise and air pollution but we do.

    In my view change is a very long-term process. Our society will slowly and gradually understand what is good or bad for them and will evolve.

    The few of remarkable changes were brought under British rule because they were dictator, and in democracy you can’t force people to follow something they don’t like.

    I will appreciate your views on it.

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