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शराब का जहर नहीं होगा – ‘अभिनव राजस्थान’ में

शराब की उपयोगिता(?)  
शराब की हमारे समाज में क्या उपयोगिता है, इस विषय पर स्पष्ट धारणा अभी तक विकसित नहीं हो पायी है. अभी तक हम यह तय नहीं कर पाए हैं कि शराब जैसे मादक पेय का उत्पादन कर इसे बेचने से समाज को क्या फायदा है. शायद एक जिम्मेदार देश की तरह हम अपने भले बुरे के बारे में कई मुद्दों पर स्पष्ट विचार भी नहीं बना पाए है. आप भी सोचिये न कि शराब पीने से क्या फायदा है. जबकि नुकसान कितने हैं, उनके बारे में हम सब जानते हैं. इसी को ध्यान में रखकर हमारे संविधान में शराब बंदी का लक्ष्य नीति निदेशक तत्त्वों में शामिल किया गया था. लेकिन जैसा अक्सर होता है कि समाज के कुछ ‘चालू’ किस्म के लोग हमेशा अपने कुतर्कों से गलत बातों को भी सही साबित करने में लगे रहते हैं. वे शराब बंदी का नाम लेते ही इतने कुतर्क हम पर फेंकते हैं कि हम मुंह फाड़े – आंखे पसारे उनको देखने लगते हैं और हिम्मत हारकर, निराश होकर बैठ जाते हैं.

चलिए, राजस्थान के सन्दर्भ में इस विषय को समझते हैं.

तथ्य यह है कि अभी भी हमारे प्रदेश में दस प्रतिशत से भी कम लोग शराब का सेवन करते हैं. लेकिन माहौल ऐसा बनाया जा रहा है कि जैसे सारी आबादी ही नशे में झूल रही हो. किसी भी गाँव में या कस्बे में कुछेक लोग शराब पीते हैं, लेकिन उनकी अवांछित हरकतों से जब हम परेशान होते हैं, तो तस्वीर भयावह लगने लगती है. इसलिए समाज में जब भी किसी मंच या चौपाल पर हम जुटते है तो लोग शराब से छुटकारे की इच्छा जताते है. इसी से अंदाज लग जाता है कि अभी भी समाज ने इस बुराई को स्वीकार नहीं किया है. समाज में अभी यह दहेज या मृत्युभोज की तरह ‘परम्परा’ नहीं बन पायी है. ऐसा नहीं हुआ है कि घर घर में लोग शराब की बोतलें खोल कर बैठे हों. हकीकत तो यह है कि आज भी अधिकाँश शराबी छुप छुप कर शराब पीते है. यह शुभ संकेत है. वर्ना हमारा शासन चला रहे लोगों के भरोसे तो शराब को लोग चाय की तरह पीना शुरू कर देते. शासन की नीति पर नजर डालें तो लगेगा कि सरकार संविधान की मद्य निषेध की भावना की कैसे खुली धज्जियाँ उड़ा रही है. कितने गर्व से सरकार शराब को अधिक से अधिक पीने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करती है. गली गली, गांव गाँव दुकानें जो खोल कर बैठी है.

आबकारी विभाग के चुटकुले
कभी राजस्थान के आबकारी विभाग की वेबसाइट पर जाकर देखें. आप हँसने लगेंगे. यह जानकर कि समाज ने जिनको शासन की जिम्मेदारी दे रखी है, वे समाज के भले के लिए किसी नीति पर काम कर रहे हैं. वे शराब के गुणगान ऐसे करते हैं, जैसे इस मादक पेय के बिना देश का भविष्य ही अन्धकार में है.एक एक कर उस नीति के बिंदुओं पर गौर फरमाएं.
  1. आबकारी विभाग कहता है कि उसका उद्देश्य ‘मानव उपयोगी(?)’ पेय पदार्थों की ‘गुणवत्तायुक्त’ उपलब्धता सुनिश्चित करना है. अब मानव जीवन में शराब किस तरह से उपयोगी है, इस पर विभाग ने पूरी बात नहीं लिखी है. इसको पीने से स्वास्थ्य को कोई लाभ होता हो या कार्यक्षमता बढती हो, इस पर स्पष्ट नहीं लिखा गया है ! क्वालिटी या गुणवत्ता से उनका मतलब है कि अधिक जहरीली शराब न बिक सके, जिसको पीकर मरने से  विभाग के ‘कमाऊ पूतों’ की संख्या कम न हो जाए.  जबकि शराब वैसे भी  धीमा जहर है और इसको नियमित पीने वालों का समय से पहले मरना भी निश्चित है. बस ‘गुणवत्तायुक्त’ शराब पिलाकर शराबियों के परिवार का शोषण सरकार ( जी हाँ, सरकार) और शराब बनाने- बेचने वाले थोड़े लंबे समय तक कर सकते हैं.
  2. विभाग सीना तानकर कहता है कि बिक्री कर के बाद सरकार को सबसे अधिक राजस्व या टेक्स शराब से ही मिलता है. इससे शासन को चलाने में मदद मिलती है, विकास (?) के लिए धन मिलता है.. कमाल है. जहर बेचकर भी राजस्व कमाने के बारे में कोई अत्यंत गैर-जिम्मेदार समाज या शासन ही चिंतित हो सकता है. कितनी बेशर्मी से शराब के पैरोकार यह सब लिख- बोल लेते हैं. शराब से कोई ढाई से तीन हजार करोड़ रूपये की आमदनी सरकार प्रति वर्ष कागजों में बताती है. अवैध शराब से दुकानदारों, तस्करों, आबकारी और पुलिस विभाग के कर्मचारियों-अधिकारियों की इससे कई गुना आमदनी अलग से होती है. उसको अभी छोडिये. यानि दो-तीन हजार करोड़ के मामूली राजस्व के लिए सरकार ने हमारे लाखों परिवारों को अंधेरी खाई में धकेल कर जैसे ‘बड़ा’ काम किया है. यह राजस्व का कुतर्क देकर ही तो सरकार और कई ‘होशियार’ लोग इस ‘मौत के खेल’ को चलाये रखे हैं. इतना जोर से ये होशियार लोग चिल्लाते हैं कि बेचारे नशा विरोधी लोगों की आवाज नक्कारे में तूती की तरह दब कर रह जाती है.
लेकिन राजस्व प्राप्ति के इस ‘खेल’ का दूसरा पक्ष देखिये.
  1. जो व्यक्ति नियमित और अधिक शराब पीता है, वह शारीरिक रूप से कमजोर हो ही जाता है. बीमारियों से घिर ही जाता है. काम पूरी क्षमता से नहीं कर पाता है. यानी हमारा एक नागरिक जो समाज और प्रदेश के लिए कोई महत्वपूर्ण काम कर सकता था, उसे हम इस शराब के कारण खो देते है. आपने कई अत्यंत प्रतिभाशाली लोगों को शराब के कारण बर्बाद होते देखा होगा. बल्कि आजकल तो इन शराबियों में युवाओं की संख्या अधिक होना हमारी चिंता को और बढ़ा देता है. शहरों में बार या होटलों में नशे में झूमते युवाओं से अगली पीढ़ी को हो रहे नुकसान का कैसे गिनें. इस बर्बादी की कितनी कीमत होगी. यह कीमत, यह नुकसान कौन गिनेगा ? आबकारी विभाग, समाज कल्याण विभाग या वित्त विभाग.
  2. अमीर हो या गरीब, शराबी व्यक्ति का परिवार किस स्थिति से गुजरता है. उसका अंदाज हम सबको है. घर की गाढ़ी कमाई शाम को शराब में फूंकने के बाद गरीबों के चूल्हे कैसे जलते हैं, इस बारे में आबकारी विभाग को ही प्रकाश डालना चाहिए. कैसे बच्चे हरी सब्जी, फल और दूध को तरसते हैं, इस पर भी विभाग को खुल कर बोलना चाहिए. ‘नरेगा’ की वेबसाइट पर भी यह लिखना चाहिए कि उस योजना से प्राप्त पैसे का कितना ‘सदुपयोग’ मजदूर लोग शराब पीकर करते हैं. आबकारी विभाग को भी ग्रामीण विकास मंत्रालय का आभार जताना चाहिए कि उसकी नरेगा योजना से विभाग के राजस्व में काफी वृद्धि हुई है !
वहीँ जो कलह रात में घर में मचती है, जो हंगामा और मारने पीटने का कार्यक्रम होता है, उस पर भी विभाग की वेबसाइट पर लिखा जाना चाहिए. उन सहमे हुए बच्चों की तस्वीरें भी विभाग को दिखानी चाहियें, ताकि इस ‘गुणवत्तायुक्त मानव उपयोगी पेय’ से मिलने वाले राजस्व के बारे में हम ठीक से जान पायें.
  1. शराब के सेवन से कितनी दुर्घटनाएं होती है, झगडे होते हैं, हत्याएं होती हैं, इसका भी हिसाब बनाना चाहिए. शराब की आदत के कारण हमारे कानून के रखवाले कई सिपाही और अधिकारी अपने काम को ठीक से अंजाम दे पाते हैं या नहीं, इस पर भी पुलिस और आबकारी विभाग को मिलकर अध्ययन करना चाहिए. यानि आबकारी विभाग को दुर्घटनाओं, हत्याओं और झगडों से होने वाले नुकसान की कीमत आंकड़े भी अपनी वेबसाइट पर प्रस्तुत करने चाहियें. तभी तो राजस्व के इस खेल की असली तस्वीर उभर सकेगी. तभी तो पता लगेगा कि इस ‘मानव उपयोगी’ पेय को अपना कर सरकार ने प्रदेश के विकास को कितनी गति दी है.
  1. आबकारी विभाग के साईट पर अन्य चुटकुले भी आपको गुदगुदायेंगे. विभाग का नियम कहता है कि कोई भी दूकान राष्ट्रीय या राज्य मार्ग के बिल्कुल पास न होकर 150 मीटर की दूरी पर होगी और कोई भी दुकानदार किसी ड्राइवर को शराब नहीं बेचेगा ! आप कभी किसी हाइवे पर सफर करते हैं तो विभाग के इस नियम का कैसे पालन होता है, इसको स्वयं देख सकते हैं. हाइवे के ड्राइवरों के भरोसे ही तो अधिकतर दुकानें चलती हैं. फिर शराब बेचते वक्त दुकानदार कैसे पता करेगा कि खरीददार व्यक्ति ड्राइवर है कि नहीं ! है न चुटकुला ? ऐसा ही एक और चुटकुला (नियम) यह भी है कि दुकानदार किसी पुलिसवाले को शराब नहीं बेचेगा ! बेचारा दुकानदार ! मरना है उसको जो पुलिसवालों को यह ‘मानवोपयोगी’ पेय नहीं बेचेगा. वैसे भी अवैध शराब बेच रहे अधिकतर दुकानदारों से पुलिस को शराब खरीदने की जरूरत ही कहाँ पड़ती है !  नियम तो यह भी है कि शराब की दुकानें स्कूलों, अस्पतालों, मंदिरों, मस्जिदों या गुरुद्वारों के आसपास 300 मीटर की परिधि में नहीं होनी चाहियें. लेकिन इस नियम की भी खिल्ली उडाई जाती है. नागौर जिले के आबकारी अधिकारी से जब हमने सूचनाएं मांगीं, तो पूरी पोल ही खुलती नजर आयी.
  2. अंतिम और मजेदार चुटकुला. हमने कहा न कि भारत के संविधान में मद्य निषेध की कोशिशों का सुझाव दिया गया है. तो हमारे आबकारी विभाग ने अपनी वेबसाईट पर यह भी लिखा कि विभाग शराब के सेवन को निरुत्साहित करने के प्रयास करेगा, लोगों को शराब से दूर रहने के लिए कहेगा. एक तरफ तो शराब से राजस्थान के विकास  के लिए राजस्व इकठ्ठा करने की बात और दूसरी तरफ लोगों को शराब न पीने की सलाह ! हालांकि चिंता मत करिये, आबकारी विभाग ने केवल लिखा है, शराब नहीं पीने का प्रचार थोड़े ही किया है. आपने सुना भी नहीं होगा.
‘अभिनव राजस्थान’ में          
अभिनव राजस्थान में क्या होगा ? कोई गोलमाल जवाब नहीं होगा. स्पष्ट नीति होगी कि शराब का उत्पादन, वितरण और विक्रय राजस्थान प्रदेश में नहीं होगा. राज्य में पूर्णरूपेण शराबबंदी होगी. हमें अपने समाज को बर्बाद करने वाला दो-तीन हजार करोड़ का राजस्व नहीं चाहिए. उस राजस्व से तौबा करेंगे. ऐसा कहते कुतर्क शास्त्री अपनी ‘देश सेवा’ (?) से ओतप्रोत बुद्धि से वार करेंगे. हम विनम्रता से लेकिन ठोस जवाब देंगे.
  1. वे कहेंगे, इससे जो राजस्व का नुकसान होगा, उसकी भरपाई कैसे होगी ? हम कहेंगे, कैसा नुकसान ? लाखों परिवार बर्बाद होने से बचेंगे और काम पर लगेंगे, तो नुकसान होगा कि फायदा ? बच्चे सहमना बंद होंगे, महिलाओं की सिसकियाँ कम होंगी. झगडे और हत्याएं कम होंगी. दुर्घनाओं में हाथ-पेर कम टूटेंगे, कम लोग मरेंगे. इस फायदे को गिन सकते हो क्या ? गुजरात , जहाँ आज भी शराब बंद है, इस राजस्व के बिना भी कैसे प्रगति हो रही है ? ‘अभिनव राजस्थान’ में हम भी अपना उत्पादन बढाकर राजस्व कमाएंगे, जहर बेचकर नहीं.
  2. गुजरात का नाम आते ही नशे के पक्षधर कहेंगे कि वहां भी तो खूब शराब बिकती है. वे तो यहाँ तक कहेंगे कि वहां राजस्थान से भी ज्यादा शराब बिकती है. आप परवाह न करें. यह झूठ है. हाँ’ मात्र गिने चुने लोग वहां शराब जरूर पीते है, लेकिन वहां शराब पीना अपराध होने के कारण शराबी डरे हुए रहते हैं और हमारे यहाँ की तरह खुले आम नहीं घूमते हैं. शराब की खुली बिक्री न होने के कारन ही गुजरात में शांति रहती है, लोग परिवार के साथ आनंद से रहते हैं और अपनी सम्रद्धि के लिए काम करते हैं.
  3. अंतिम कुतर्क. शराब बंदी को प्रशासन कैसे रोकेगा ? तो जान लीजिए कि ‘अभिनव राजस्थान’ के नेतृत्व और ईमानदारी से गजब की राजनैतिक ईच्छाशक्ति उभरेगी. इस स्थिति में एक तो वैसे ही लोग शराब से परहेज करने में सहयोग करेंगे, उज्जवल भविष्य का मार्ग पकड़ेंगे और दूसरे,  सक्षम प्रशासन के कारण ‘अभिनव राजस्थान’ के अंदर किसी की क्या मजाल होगी  कि शराब की एक बूँद भी अवैध तरीके से ले आये और बेच दे. हमें इससे क्या कि अन्य राज्यों की आबकारी नीति क्या है. हम तो राजस्थान में संविधान की मद्यनिषेध की भावना को लागू कर देंगे. हम यानि, हम सब. आपां नहीं तो कुण ?

About Dr.Ashok Choudhary

नाम : डॉ. अशोक चौधरी पता : सी-14, गाँधी नगर, मेडता सिटी , जिला – नागौर (राजस्थान) फोन नम्बर : +91-94141-18995 ईमेल : ashokakeli@gmail.com

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  2. वे कहेंगे, इससे जो राजस्व का नुकसान होगा, उसकी भरपाई कैसे होगी ? हम कहेंगे, कैसा नुकसान ? लाखों परिवार बर्बाद होने से बचेंगे और काम पर लगेंगे, तो नुकसान होगा कि फायदा ? बच्चे सहमना बंद होंगे, महिलाओं की सिसकियाँ कम होंगी. झगडे और हत्याएं कम होंगी. दुर्घनाओं में हाथ-पेर कम टूटेंगे, कम लोग मरेंगे. इस फायदे को गिन सकते हो क्या ? गुजरात , जहाँ आज भी शराब बंद है, इस राजस्व के बिना भी कैसे प्रगति हो रही है ? ‘अभिनव राजस्थान’ में हम भी अपना उत्पादन बढाकर राजस्व कमाएंगे, जहर बेचकर नहीं.

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