हमारे लक्ष्य
1. पाँच वर्षों में राजस्थान को भारत का श्रेष्ठ शासित प्रदेश बनाना।
2. प्रदेश के कोने-कोने को विकास की मुख्य धारा में शामिल करना।
हमारे उद्देश्य
1. जनता में स्वशासन का भाव जाग्रत करना,
जन जागरण से लोकतंत्र का असली मतलब समझाना।
2. कर्मचारियों में सेवा और सहयोग का भाव जगाना,
हृदय परिवर्तन से उनके व्यवहार में स्थाई परिवर्तन लाना।
3. राजनीतिक दलों की कार्य शैली में बदलाव करवाना,
ताकि राज में आने के लिए कुछ भी करने की प्रवृत्ति कम हो।
4. विकास की गति को बढ़ाना,
सुशासन के माध्यम से संसाधनों का उचित उपयोग करना।
5. भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त करना,
इसके लिए हम ये आवश्यक परिवर्तन करेंगे
1. योजना निर्माण को महत्त्वपूर्ण कार्य बनायेंगे,
इस पक्ष की उपेक्षा अपनी हदें पर कर चुकी है।
2. प्रशासनिक ढाँचे में बड़े बदलाव करेंगे,
वर्तमान समय के अनुसार आवश्यक विभाग और इकाइयाँ गठित करेंगे।
3. शासन की कार्य प्रणाली को बदलेंगे,
सरल, सेवा भावी, सुगम और जन एवं कर्मचारी हितैषी नियम बनायेंगे।
4. शासन की शब्दावली बदलेंगे,
अँग्रेजी, मुग़ल और सामंती शासनों का परायापन खत्म करेंगे।
5. विषय विशेषज्ञों को शासन में अधिक महत्त्व देंगे,
जिससे विकास के लिए शासन का माहौल बन सके।
हमारी रणनीति
1. मुख्यमंत्री के साथ विभिन्न विभागों के अधिकारियों एवं कर्मचारियों की बैठकें होंगी, जिनमें अभिनव राजस्थान के लिए आवश्यक शासन और प्रशासन की रुपरेखा बनेगी।
2. जन जागरण के कार्यक्रमों के माध्यम से आम जन को लोकतांत्रिक शासन प्रणाली के बारे में बताया जायेगा। उन्हें बताया जायेगा कि सरकार उनके द्वारा दिए गए टैक्स द्वारा ही चलती है, पैसा कहीं ओर से नहीं आता है। लेकिन जनता को उसके शासन का अहसास दिलाने के साथ-साथ नागरिक ज़िम्मेदारियाँ का भी आभास करवाया जायेगा।
3. प्रदेश के शिक्षण संस्थानों को शासन से जोड़ कर विशेषज्ञों का योगदान बढ़ाया जायेगा, जैसा विकसित देशों में होता है या कभी प्राचीन भारत में होता था। शासन में प्रवेश के लिए भी यूनिवर्सिटी की अंक तालिका आधार होगी, अलग से कोई प्रवेश परीक्षा नहीं होगी। विभागों में भी कर्मचारियों को आगे बढ़ने के अवसर उनके विभागीय ज्ञान और क्षमता के आधार पर मिलेंगे।
4. प्रदेश की वित्त व्यवस्था की मजबूती के लिए एक बड़ा बचत आंदोलन चलाया जायेगा, जिसे सामाजिक खर्चों को कम करने के आंदोलन से जोड़ा जायेगा। इस धन से पचास हजार करोड़ रुपए का ‘राजस्थान नवनिर्माण कोष’ संचित किया जायेगा, जो अभिनव राजस्थान की रचना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। अपने स्वयं के इस कोष से विकास की अभिनव योजनाएं बनेंगी, जिनका मूल्यांकन केवल खर्च की गयी रकम के आंकड़ों से न होकर वास्तविक और मापन योग्य दृष्ट उपलब्धि से होगा। इस कोष से बाहरी कर्ज और उस पर दिए जा रहे ब्याज से छुटकारा मिलेगा तो दूसरी ओर इस कोष पर दिया गया ब्याज स्थानीय जनता में बंटने से पूँजी का ठहराव राजस्थान में हो पायेगा। लेकिन इस कोष का एक-एक पैसा पारदर्शी तरीके से और योजना में जन भागीदारी से होगा। और तब पूरा विश्व राजस्थानी दिमाग और हौसले की करामात वैसे ही देखेगा जैसी कभी प्राचीन समय में देखा करता था।
5. भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए भ्रष्ट होने की प्रवृत्ति को ही कम किया जायेगा। सामाजिक खर्चों को कम करने के आंदोलन से अवांछित और थोपी गयी आवश्यकताओं को कम किया जायेगा, ताकि मध्यम और निम्न स्तर के कर्मचारी भ्रष्ट होने से बचेंगे। वहीं सादगी और ज्ञान का मूल्य समाज में स्थापित करने से दिखावा और खर्च से झूठी शान दिखाने की उच्च वर्ग की लालसा कम होगी। दूसरी ओर शासन पर अंकुश के लिए एक विशेष सतर्कता बल खड़ा किया जायेगा, जिसका सम्बन्ध पुलिस या किसी अन्य विभाग से नहीं होगा। विशेष रूप से प्रशिक्षित इस बल को प्रत्येक ज़िले(जनपद) में तैनात किया जायेगा। इस बल को शहीद भगत सिंह बल के नाम से जाना जायेगा, जो शहीदों के बलिदानों की कीमत कर्मचारियों और जनता को याद दिलाता रहेगा। फिर किसकी मजाल कि भ्रष्ट होने के बारे में सपने में भी सोच पाए।
वर्तमान स्थिति
1. 64 वर्षों की आजादी के बाद भी जनता में शासन के प्रति अपनापन नहीं जग पाया है। ‘राज’ शब्द अभी भी गुलामी का भाव शासकों और जनता दोनों में पैदा कर रहा है। इससे जनता अभी भी सरकारी कार्यालयों से खौफ खाती है और शासक-प्रशासक इस दूरी का अपने राज में बने रहने के लिए उपयोग करते है। उचित कार्यों के लिए भी रिश्वत देना जनता ने एक चिरकालिक नियम स्वीकार कर लिया है।
2. राजनीतिक दलों में ही लोकतंत्र लगभग खत्म हो गया है और उनमें भी सरकार की तरह ऊपर से नियुक्तियां हो रही हैं और चुनावों के लिए टिकट खैरात की तरह बाँटे जा रहे हैं। इन दलों की कानूनी जिम्मेदारी होती है कि यह जनता में लोकतंत्र का भाव जगाएं, परन्तु ये तो उलटे उस भाव का गला घोंटने में लगे हैं। यही नहीं अपने धन-बल के कारण ये अच्छे विकल्पों को भी नहीं उभरने देते हैं। अब हालात यह है कि अधिकांश जनता का वोट देने का मन ही नहीं करता है और केवल धन-बल-प्रचार से पक्ष में जुटाए 30-40 प्रतिशत वोट से 60-70 प्रतिशत विरोधी पक्ष पर ये दल ‘राज’ कर रहे हैं। राजतन्त्र का यह विचित्र नया रूप उभरा है।
3. सभी विभाग अपने मूल कार्य में कम रुचि लेते हैं और दूसरों के काम में अधिक दखल देते हैं। भू प्रबंध अधिकारी जमीन विवाद निपटाने की बजाय स्कूल और अस्पताल के निरीक्षण में ज्यादा रुचि लेते हैं, तो पुलिस अपराधों की रोकथाम और जाँच की जगह गीली लकड़ियों और अवैध शराब को पकड़ने में अधिक सक्रिय रहती है। वहीं विभागों में प्रमुख पदों पर विशेषज्ञों के स्थान पर अब भी अँग्रेजी राज की तरह सामान्य जानकारियों वाले अधिकारी क़ाबिज़ हैं, जो विशेषज्ञों में निराशा और भय पैदा करने से अधिक कुछ नहीं करते हैं।
4. योजना निर्माण में राजनेताओं की कोई रुचि नहीं रह गयी है। यह काम अब केवल अफ़सरों के भरोसे रह गया है। इसी वजह से सभी योजनाएं धरातल पर आकार पिटती हैं और जनता का व उधार लिया गया पैसा व्यर्थ चला जाता है। योजनाओं का मूल्यांकन भी उन पर खर्च की गयी रकम से किया जा रहा है, वास्तविक दृष्ट उपलब्धि से नहीं। इससे वांछित परिणाम जनता को नहीं दिखाई देते हैं। यानी महज खानापूर्ति से भारत के इस सबसे बड़े प्रदेश को चलाया जा रहा है। 5 या 10 वर्षों में प्रदेश कहाँ जा सकता है, इसके प्रति दूरदर्शिता ‘विजन’ का भी अभाव है।
5. पैसे के अभाव का कृत्रिम माहौल बना कर विकास की भावना को मारा जा रहा है। प्रवासियों या बाहरी सहायता से प्रदेश चलाने के आत्मघाती प्रयासों को बुद्धिमत्ता बताया जा रहा है और बचत के पैसे का राजस्थान में कोई महत्त्व नहीं बताकर उस विभाग को ही बंद कर दिया गया है। जबकि राजस्थान के भीतर अथाह धन आज भी है, जिसे जन आंदोलन से इकट्ठा किया जा सकता है, बशर्ते कि राजनैतिक नेतृत्व की आँखों में ईमानदारी, नेकनीयती और दूर दृष्टि दिखाई दे और योजना निर्माण में जन भागीदारी हो। धर्मशालाओं, गोशालाओं, सामाजिक भवनों, मंदिरों-मसजिदों और समारोहों के लिए तो कभी पैसे की तंगी नहीं दिखाई देती है, केवल सरकार के पास ही पैसा कम क्यों है ?
प्रशासनिक ढाँचा
सभी विभागों में
मुख्यमंत्री
मंत्री
महानिदेशक –प्रदेश स्तर पर
अतिरिक्त महानिदेशक- संभाग स्तर पर
निदेशक- जिला स्तर पर
सहायक निदेशक – ब्लॉक (विकास खंड) स्तर पर
यह भी होगा
1. किसी भी विभाग के भीतर कोई निगम या संघ नहीं होगा। ये निगम 50 वर्षों में केवल कुछ अफ़सरों एवं नेताओं के लिए शरणगाह, चरागाह या ऐशगाह ही साबित हुए हैं।
2. शासन के बारे में अधिकांश सूचनाएँ वैसे ही जनता के लिया उपलब्ध होंगी और इनके लिए जनता को सूचना के अधिकार का इस्तेमाल नहीं करना पड़ेगा।
3. कर्मचारियों के लिए स्पष्ट स्थानांतरण नीति बनेगी, ताकि उनके परिवारों में फैली अनिश्चितता खत्म होगी। अब मनचाहे तरीके से किसी अधिकारी या कर्मचारी को लोकप्रियता दिखाने के चक्कर में स्थानांतरित या दंडित नहीं किया जा सकेगा। स्पष्ट कारणों का उल्लेख करना पड़ेगा।
gahlot ke shashan me aisa nahi ho shakta
ye sab sapne sakar nahi honge
kyonki pahle the british ab h kangresh