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अभिनव शिक्षा

हमारे लक्ष्य
1.         राजस्थान के प्रत्येक नागरिक को उच्चतम शिक्षा का अवसर देना।
2.         राष्ट्र निर्माण की लहर राजस्थान और भारत में पैदा करना।
  हमारे उद्देश्य
1          समाज के लिए आवश्यक ज्ञान का सृजन करना,
                           सार्थक शिक्षा से सामाजिक-आर्थिक विकास को गति देना।
2.         सृजित ज्ञान के उपयोग की व्यवस्था से बेरोजगारी मिटाना,
                           शिक्षा को उत्पादन एवं सेवाओं से व्यावहारिक रूप से जोड़ कर।
3.         शिक्षा के क्षेत्र में असंतुलन कम करना,
                           प्रदेश के विभिन्न वर्गों एवं क्षेत्रों को शिक्षा के समान अवसर देकर।
4.         शिक्षकों को समाज में उचित सम्मान देना,
                           ताकि वे समर्पण भाव से राष्ट्र निर्माण में लग जाएँ।
5.         विद्यार्थियों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना,
                           कलाओं एवं खेलों को जीवन के लिए आवश्यक ज्ञान मानकर।
  इसके लिए हम ये आवश्यक परिवर्तन करेंगे  

1.         शिक्षण संस्थानों की संरचना, शासन पद्धति एवं शिक्षण विधि बदलेंगे,
                             प्राथमिक विद्यालय से विश्वविद्यालय तक समन्वित ढाँचा बनायेंगे।
2.         पाठ्यक्रम को समाज की वर्तमान आवश्यकताओं के अनुसार तैयार करेंगे।
                             विज्ञान (कृषि विज्ञान सहित) और वाणिज्य का प्रतिशत बढ़ाएंगे।
3.         शासन एवं शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश के लिए विशेष परीक्षाएं नहीं होंगी,
                             बोर्ड एवं यूनिवर्सिटी की परीक्षाओं की मेरिट ही प्रवेश का आधार होंगी।
4.         प्रदेश स्तरीय परीक्षाओं में आंतरिक मूल्यांकन को 50 प्रतिशत वजन देंगे,
                             शिक्षकों पर भरोसा कर शिक्षा केन्द्रों की गरिमा फिर से बढ़ाएंगे।
5.         कला एवं खेल को शिक्षा का अभिन्न अंग बनायेंगे,
                             इन्हें रुचि एवं पूर्णकालिक कार्य, दोनों तरह से  विकसित करेंगे।
हमारी रणनीति 
1.        मुख्यमंत्री एवं शिक्षा मंत्री प्रदेश भर में उपकुलपतियों, प्राचार्यों, प्रोफेसरों, व्याख्याताओं, प्रधानाचार्यों एवं शिक्षकों के साथ बैठकें और सम्मेलन करेंगे, जिनमें राजस्थान की शिक्षा व्यवस्था में वांछित परिवर्तनों एवं योजनाओं के बारे में गंभीर मंत्रणाएं होंगी। विद्यार्थियों एवं अभिभावकों के भी बड़े सम्मेलन प्रदेश भर में होंगे। शिक्षकों, विद्यार्थियों तथा अभिभावकों को विश्वास में लेकर ही नई शिक्षा व्यवस्था की रचना होगी और उनकी भागीदारी ही सफलता दिलवाएगी।
2.        प्रदेश की योजना में शिक्षा को प्राथमिकता देंगे। शिक्षा की योजनाओं का सरलीकरण करेंगे और शिक्षा केन्द्रों से मिड डे मील जैसे कार्यों को बाहर करेंगे। वहीं उच्च शिक्षा की उपेक्षा पर विराम लगा कर कॉलेज एवं यूनिवर्सिटी के विकास पर नई योजनाएं बनायेंगे। कैम्पस में शिक्षा का माहौल फिर से बनाकर युवाओं को दिग्भ्रमित होने से रोकेंगे।
3.        कक्षा 1 से 16 तक एक समरूप पाठ्यक्रम बनायेंगे। प्राथमिक (1-5) व माध्यमिक (6-10) के अनिवार्य विषयों के बाद जूनियर कॉलेज (11-12) में केवल दो ऐच्छिक विषय होंगे। सीनियर कॉलेज (13-16) में केवल एक विषय होगा, जिसमें तीन वर्ष तक सैद्धांतिक अध्ययन के बाद एक वर्ष का व्यावहारिक ज्ञान करवाया जायेगा। इतिहास, साहित्य, लेखा शास्त्र, प्रबंध, भौतिकी, मेडिकल, इंजीनियरिंग, संगीत, खेल, आदि सभी विषयों में यही समान विधि अपनाई जायेगी, ताकि विशेषज्ञता पनप सके।
4.        कृषि एवं लघु-कुटीर उद्योगों को शिक्षण संस्थानों से व्यावहारिक रूप से जोड़ कर आर्थिक विकास को गति दी जायेगी। संभाग स्तर पर स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार कार्यक्रम बनाकर उत्पादन में शिक्षा केन्द्रों की भूमिका सुनिश्चित की जायेगी, ताकि समाज का विश्वास इन केन्द्रों पर फिर से जम सके।
5.        सर्व शिक्षा के लिए हम प्रत्येक मानव आबादी को पंचायतों द्वारा संचालित अभिनव परिवहन व्यवस्था से जोड़ेंगे, ताकि प्रत्येक विद्यार्थी को विकास खंड मुख्यालय पर स्थित सीनियर कॉलेज तक की शिक्षा ग्रहण करने का अवसर मिल सके। वहीं एक कक्षा – एक शिक्षक के सिद्धांत को लागू कर स्थानीय स्तर पर आवश्यक समानीकरण करेंगे।
 वर्तमान स्थिति
1.       शिक्षा में सृजित ज्ञान का  उपयोग समाज में नहीं किया जा पा रहा है। अधिकांश विषयों के ज्ञान की समाज में प्रत्यक्ष आवश्यकता नहीं है, और जो उपयोगी ज्ञान सृजित हो रहा है, उसका उपयोग संसाधनों की कमी के चलते पूर्ण रूप से नहीं किया जा सक रहा है। इसका परिणाम यह है कि समाज में बेरोजगारी फैलने से निराशा ,कुंठा और बेचैनी की भरमार है। व्यवस्था पर अविश्वास हो गया है। बात-बात पर चक्का जाम, आन्दोलन और बंद हो रहे हैं, तो नेताओं-अफ़सरों के लिए तालियाँ नहीं बज रही है। उद्घोषक चिल्ला-चिल्ला कर ताली बजाने को कहते हैं, जय बोलने को कहते हैं, पर किराये की सभाओं में भी जैसे जनता के हाथों और गले को लकवा मार जाता है। जनता ठगी- ठगी सी देखती रहती है। इसके मारे अब तो कवि भी फूहड़ चुटकुलों से काम चलाने पर उतर गए हैं।
2.       शिक्षक और जनता के बीच नेता और अफसर दीवार बन कर खड़े हो गए हैं। शिक्षक का सम्मान छिन जाने से से उसका समर्पण भाव कम हो गया है और वह भी अपने को एक वेतन पाने वाले कर्मचारी से अधिक कुछ नहीं समझ रहा है। उसने तो अपने खुद के बच्चों को भी अपनी ही सरकारी स्कूल से निकाल दिया है। उसका यह निर्णय ही व्यवस्था का हाल बताने के लिए काफी है।
3.       राजस्थान के उच्च शिक्षा के केंद्र लगभग बंद से पड़े हैं और इसके लिए शिक्षक और छात्र एक दूसरे को जिम्मेदार बता कर पल्ला झाड़ रहे हैं। छात्र संगठन केवल चुनाव का ध्यान करते हैं और लगता है कि शिक्षा केन्द्रों में भी नेताओं के वंशज तैयार होने लगे हैं, जैसे नरेगा योजना में। उधर विश्वविद्यालय न तो विश्व स्तर के रहे हैं और न ही उनमें विश्व के अन्य देशों से छात्र आ रहे हैं। हालात यह है कि इन संस्थानों के हाल तो माध्यमिक स्कूल के स्तर भी नहीं रहे हैं। खेतों में, चार-चार कमरों में विश्वविद्यालय चल रहे हैं। तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालयों की धरती के विद्यार्थी अन्य देशों में ज्ञान प्राप्त करने जा रहे हैं। कितना दुर्भाग्य है।
4.       शिक्षा के क्षेत्र में भारी असंतुलन है। कोई भी सरकारी विद्यालय अँग्रेजी माध्यम में नहीं पढ़ाता है। यानी गाँवों, कस्बों के, गरीबों के बच्चे उन परीक्षाओं के बारे में सोच भी नहीं सकते, जिनमें अँग्रेजी के ज्ञान का अधिक महत्व है। वे एम बी ए या एन डी ए के बारे में नहीं जानते हैं। वे तो यह भी नहीं जानते की हवाई जहाज को उड़ाने वाला पाइलट कैसे बनता है। भारत में फौजी अफ़सरों और पायलटों की कमी होते हुए भी गाँव-कस्बे के इच्छुक विद्यार्थियों के प्रवेश को रोकने के लिए इन दरवाज़ों पर ताले लगा कर रखे गए हैं। उन्हें तो बस पैदल फौजी ही बनाना है,जैसे अँग्रेज़ राज में होता था। यही नहीं प्रतियोगी परीक्षाओं का जाल बिछा कर भी गाँव-कस्बों और पिछड़े ज़िलों के विद्यार्थियों के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है।
5.       खेल और कला को तो स्कूलों से विदा ही कर दिया गया है। इनकी अनुपस्थिति से बाल मन की बेचैनी कई निराले रूप ले रही हैं। गुटखा, मोबाइल, क्रिकेट, टी वी के कार्टून और वीडियो-कंप्यूटर गेम्स ने एक पूरी पीढ़ी को अक्षम बना दिया है। गुटखे से मुँह चिपक रहे हैं, भूख नहीं लगती है, तो मोबाइल से कान खराब हो रहे है, मस्तिष्क कैंसर की स्थिति बन रही है और अश्लीलता भी घरों को कोठों का रूप दे रही है। कंप्यूटर, मोबाइल और टी वी के अधिक उपयोग से आँखें खराब भी हो रही हैं, क्यों कि एक तो बच्चे दूध नहीं पीते हैं और ऊपर से कंप्यूटर, टी वी और मोबाइल स्क्रीन की किरणों के आक्रमण का आँखों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। वहीं दूसरी ओर धन कमाने को आतुर कम्पनियों और खिलाड़ियों के प्रचार-प्रसार के जाल में बच्चों ने समय खराब करने वाले खेल क्रिकेट को अपना जीवन बना लिया है। नतीजा यह है विवेकानंद और भारत माता से अधिक आदर्श उन्हें सचिन-सहवाग-धोनी या सलमान-शाहरुख या केटरीना-करीना लगते हैं। लेकिन इन बीमारियों की जड़ स्कूल से गायब हुए कला और खेल में है, यह बात बुद्धिजीवी ठीक से नहीं कह पा रहे हैं।
अभिनव शिक्षा का प्रशासनिक ढाँचा
    शिक्षा मंत्री- प्राथमिक शिक्षा
    शिक्षा मंत्री- माध्यमिक शिक्षा
    शिक्षा मंत्री- उच्च शिक्षा
प्रदेश स्तर पर- महा निदेशक ( प्राथमिक), महा निदेशक  (माध्यमिक)
संभाग स्तर पर- अतिरिक्त महा निदेशक (प्राथमिक), अतिरिक्त महा निदेशक (माध्यमिक),अतिरिक्त महा निदेशक(उच्च)
जिला स्तर पर- निदेशक (प्राथमिक), निदेशक(माध्यमिक), निदेशक(उच्च)
विकास खंड स्तर पर- सहायक निदेशक (प्राथमिक), सहायक निदेशक(माध्यमिक) 
यह भी होगा
1.       शिक्षा विभाग पूर्ण रूप से स्वतंत्र होगा और इसमें सामान्य प्रशासन या पंचायतों-नगरपालिकाओं का कोई दखल नहीं होगा। शिक्षा विभाग के सभी पदों पर इस क्षेत्र के विशेषज्ञ ही स्थापित होंगे।
2.       भवन निर्माण का कार्य उस कार्य के मूल विभाग को और मिड डे मील का कार्य पंचायतों को   सौंपा जायेगा। पाठशालाओं को पाकशाला बनाना बहुत हो चुका। 
3.       उच्च शिक्षा के केन्द्रों को एन जी ओ की तरह समाज के महत्त्वपूर्ण काम सौंप कर सीखने के साथ कमाने की प्रवृत्ति विद्यार्थियों में विकसित की जायेगी।

About Dr.Ashok Choudhary

नाम : डॉ. अशोक चौधरी पता : सी-14, गाँधी नगर, मेडता सिटी , जिला – नागौर (राजस्थान) फोन नम्बर : +91-94141-18995 ईमेल : ashokakeli@gmail.com

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