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आरक्षण पर मैं क्या सोचता हूँ ?

आरक्षण पर मैं क्या सोचता हूँ ?
कई मित्र घुमाकर पूछते हैं, कई सीधे पूछते हैं, कई मेरा लिहाज करके चुप रहते हैं !
आज एकदम स्पष्ट कर देता हूँ, ताकि यह गांठ भी अपने अभियान में न रहे.
(यह ध्यान रखें, कि मैंने कभी आरक्षण का लाभ नहीं लिया है और न मेरे बच्चे ले रहे हैं )
मित्रों, मेरे लिए आरक्षण एक non-issue है. बहुत चिंतन किया है इस विषय पर. लेकिन समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र का छात्र होने के नाते मैं यह समझा हूँ कि इससे किसी भी समाज का उद्धार नहीं होने वाला है. किसी भी समाज का उद्धार इससे हुआ नहीं है, मेरे पास इसके पुख्ता आंकड़े हैं. आरक्षित वर्गों के आधिकांश पारिवार आज भी गरीबी और बेरोजगारी से जूझ रहे हैं. अनुमानतः हमारे समाज के एक प्रतिशत से भी कम लोग सरकारी ‘सेवा’ में जा पाते हैं और आरक्षण उसी एक प्रतिशत में घुसाने के लिए समाज के कुछ वर्गों को भारत में दिया गया है. एक प्रतिशत का हल्ला ज्यादा है. इतना सा ही मामला है, महिमामंडन ज्यादा है. इस एक प्रतिशत के अलावा जो परिवार शेष बच गए हैं, उनकी हालत ठीक नहीं है. पर इस एक प्रतिशत का यश, पैसा, दिखावा इतना ज्यादा प्रचारित होता है कि अनारक्षित वर्गों में गुस्सा पनपता है.

अवसर के इस एक प्रतिशत का इतना charm क्यों है ? क्योंकि समाज में आर्थिक प्रगति की कम दर के चलते अन्य अवसर कम उपलब्ध हैं. अगर कोई व्यक्ति इस एक प्रतिशत के बाहर इससे तीन-चार गुना ज्यादा कमाए तो क्यों जायेगा इसमें ? आजकल के चिकित्सकों को देखो. सरकारी सेवा से बचने लगे हैं. लेकिन अभी युवाओं के लिए बाजार में अवसर बहुत ही कम हैं. वे अभी तो रोजगार का मतलब सरकारी सेवा ही समझते हैं. फिर वर्तमान सरकारों में काम कम करना होता है और job security ज्यादा है. कुछ न करो तो भी महीने का वेतन मिल सकता है. यह भी आकर्षण का कारण है. उस पर कई jobs प्रतिष्ठा के सूचक भी बन गए हैं. RAS, तहसीलदार होना रुतबे का नाम है ! ऊपर की कमाईयां भी हैं. इन कारणों से यह भागदौड़ है. इन कारणों से ही आरक्षण से वंचित लोगों का विरोध है.
जब राजनेताओं को लगा कि सरकारी सेवा के आकर्षण को भुनाया जाए तो वोट मिल सकते हैं, तो वे क्यों पीछे रहते. विकास की बजाय यह सस्ता सौदा लगा. वोटों के प्रतिशत देखकर वे भी भाव-ताव करने लगे. सफल भी हुए. अब समाज में इतना बड़ा आरक्षित वर्ग खड़ा हो चुका है कि जिनको यह मिला है, वे इसे किसी कीमत पर खोना नहीं चाहते. न ही वे आर्थिक आधार या एक परिवार को एक आरक्षण की बात सुनना चाहते हैं. और जिनको नहीं मिला है, वे भी इस ‘जन्नत’ में कदम रखना चाहते हैं और जब तक नहीं मिले, तब तक वे आरक्षण को कोसते रहेंगे ! उनकी निराशा जायज भी है. अपने समान या बेहतर आर्थिक स्थिति वाले, पर कम अंकों वाले साथियों को एक प्रतिशत के ‘जन्नत’ में घुसते देखना पीड़ा देता है. उनका यह गुस्सा फिर कोई न कोई विकृत रूप लेता है, कुंठा को जन्म देता है. किसी भी समाज और देश के लिए यह शुभ नहीं है.
पर हकीकत यह है कि इस देश में आरक्षण को हटाना किसी के बस की बात नहीं है. कोई नहीं हटा सकता. आप चाहे जो तर्क दें, अक्षमता के या असमानता के. जो है, वह है. आलोचना में समय खराब करना है. आरक्षण को हटाना तो दूर, इस व्यवस्था में सुधार की भी कोई गुंजाईश नहीं है. आरक्षण हटाने के नाम पर कईयों ने पार्टियाँ बनाईं तो उनकी जमानत नहीं बची ! इस हकीकत को हमें स्वीकार कर लेना है.
मैं इस बात का समर्थक हूँ कि आर्थिक आधार पर पन्द्रह प्रतिशत आरक्षण देकर सभी को इसका प्रसाद चखा दिया जाये और नौवीं सूची में इस विषय को डालकर अस्थाई रूप से बहस को थाम दिया जाए. पर जाने क्यों इस देश के राजनेता इस बहस को ज़िंदा रखना चाहते हैं.
इसलिए हमारे लिए यह एक non-issue है. न मैं इस विषय पर बहस का इच्छुक हूँ.
तो अभिनव राजस्थान में क्या होगा ? इसे ध्यान से पढ़ना आप.
जब कोई लाईन आप काट नहीं सकते तो उसे छोटी कैसे करेंगे ? कोई दूसरी बड़ी लाइन उसके बराबर खींच दें. अपने आप वह लाइन छोटी हो जाएगी. समझदारी इसी में है. अभिनव राजस्थान वही बड़ी लाइन है. अभिनव राजस्थान की व्यवस्था में चार बातें ख़ास होंगी.
एक तो अवसरों की समानता. कक्षा एक से लेकर किसी भी डिग्री तक, गरीब-अमीर, गाँव-शहर, हिंदी-अंग्रेजी माध्यम और बालक-बालिका के बीच की खाई पाट देंगे. दो साल के भीतर. समाज के प्रत्येक परिवार को शिक्षित होने के प्रचुर अवसर मिलेंगे, अभिनव शिक्षा में. यह पूरी योजना इस 25 दिसम्बर 2016 में आपके सामने होगी. वर्तमान आरक्षण तो बहुत सालों की पढ़ाई के बाद कुछ वर्गों को सहूलियत देता है, अभिनव शिक्षा में कक्षा एक से यह सहूलियत होगी- सभी को समान रूप से. समानता का यह अवसर जब प्रारंभ से होगा तो योग्य लोगों का आत्मविश्वास बढ़ेगा.
फिर अभिनव शिक्षा में शिक्षा ऐसी होगी कि उससे ‘ज्ञान’ का सृजन होगा. यह ज्ञान योग्य लोगों के आत्मविश्वास को इस ऊंचाई पर ले जायेगा कि वह काम की तलाश की बजाय काम के अवसर पैदा करने के बारे में सोचेगा. ऐसे लोगों को आरक्षण में कोई रुचि नहीं होगी. सरकारी सेवा का गलत कारणों के लिए आकर्षण कम होगा तो आरक्षण का कोई क्या करेगा ?
तीसरे, अभिनव कृषि और अभिनव उद्योग की हमारी योजनाओं से समाज की उत्पादन व्यवस्था बहुत मजबूत होगी. समाज की पूँजी बढ़ेगी, बाजार में काम के अवसर बढ़ेंगे. यह स्थिति भी सरकारी सेवा और आरक्षण के अलावा अन्य ‘जन्नतों’ की खोज को प्रोत्साहित करेगी.
और चौथे, अभिनव शासन की जवाबदेही और पारदर्शिता उत्तम स्तर की होगी. ऐसे में मौज-मस्ती और थोथे रुआब के लिए कौन सरकार का अंग बनेगा ? ऐसे में यहाँ वे ही लोग आयेंगे जिनकी ‘रुचि’ प्रशासन में होगी. तब शिक्षक और चिकित्सक या इंजिनीयर, सामान्य प्रशासनिक अफसर बनने नहीं आएंगे. नतीजन आरक्षण का आकर्षण कम हो जायेगा.
ऐसे अभिनव राजस्थान में समृद्धि चरम पर होगी. ऐसे राजस्थान में अपार अवसर होंगे. वही स्थाई समाधान है. इस कुंठा का, इन निराशा का. गरीबी का, बेरोजगारी का. बाकी बातें हैं कितनी ही करो, कोई अंत नहीं है, समय आपका है. मुझसे सहमत होवो या नहीं, मेरा मत स्पष्ट है.
अभिनव राजस्थान – कई समस्याओं का अंतिम और स्थाई समाधान.

About Dr.Ashok Choudhary

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