Home / अभिनव कृषि / बाजरा-मक्का-ज्वार खाइए

बाजरा-मक्का-ज्वार खाइए

राजस्थान को स्वस्थ और समृद्ध बनाइये

कई चीजें हमारे जीवन में क्यों हैं, इसका कोई पुख्ता कारण नहीं होता है. बस हम यूँ ही आदतन उनसे चिपके  रहते हैं. चिपके इसलिए रहते हैं क्योंकि हमसे पहले के लोग भी ऐसा करते थे. वैसे भी हम जीवन को हलके में लेते हैं, गहराई में कम ही झांकते हैं. हमें नहीं पता कि हम सुबह की चाय के बिना क्यों नहीं रह सकते. गुटखा-जर्दा  खाने वाले को नहीं पता कि वे इस कचरे को क्यों खाते हैं. सिगरेट और बीड़ी के शौक़ीन भी ऐसा ही करते हैं. कोका कोला या अन्य जहरीले पेय पीने वाले भी शान से यह रंगीन पानी पीते हैं. सब जानते हैं कि चाय, गुटखा, सिगरेट-बीड़ी, कोला आदि जानलेवा हैं, घातक हैं, उन पर चेतावनी भी लिखी है. पर उससे कोई फर्क नहीं पड़ता, बस खाए-पीए जा रहे हैं. पूर्वजों ने बहाना मारा था कि शिक्षा के प्रसार से सब ठीक हो जाएगा, लेकिन हुआ तो इसका उल्टा ही ! विज्ञापन और लापरवाह जीवन शैली , शिक्षा पर भारी पड़ी हैं.

यहाँ हम ऐसी ही एक आदत के बारे में जानेंगे और उस आदत का राजस्थान की अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान हो रहा है, इसका विश्लेषण करेंगे. आप सही में चौंक जायेंगे.


क्यों खाते हैं, गेहूं और चावल ?


आप बाजरा-मक्का या ज्वार क्यों नहीं खाते हैं ? गेहूं या चावल क्यों खाते हैं ? कभी इस पर विचार किया है ? नहीं किया है, तो आज इस पर विचार करते हैं. यह विचार क्रांति कर सकता है. आपके घर में, आपके शरीर में और राजस्थान में. ध्यान से आगे बढ़ते हैं. सबसे पहले आप मेरे इस प्रश्न का ईमानदार जवाब देने की कोशिश कीजिये. आप बाजरा-मक्का-ज्वार क्यों नहीं खाते हैं , जबकि आपके पूर्वज इसे चाव से खाते थे ? आपके जवाब संभवतया ऐसे हो सकते हैं-
१.     आप मॉडर्न हो गए हैं, आधुनिक हो गए हैं या समृद्ध हो गए हैं और सस्ते बाजरे-मक्के-ज्वार की बजाय महंगा गेहूं अफोर्ड कर सकते हैं, खरीद सकते हैं. यह भी हो सकता है कि आपको बाजरा खाना गंवारूपन की निशानी लगता हो. ठीक वैसे ही जैसे आप राजस्थानी भाषा, पहनावे या नाच-गान को गंवारूपन मानते हैं.
२.     आपको बाजरे-मक्के-ज्वार का स्वाद अच्छा नहीं लगता है. गेहूं ही बरसों से खा रहे हैं, इसलिए गेहूं के स्वाद की आदत हो गई है.
३.     बाजरा-मक्का-ज्वार पचाना मुश्किल है और इनसे कब्ज की शिकायत भी होती है या ये गर्मी(?) करते हैं.
४.     बस यूँ ही. कभी इस बारे में गंभीरता से सोचने की जरूरत भी नहीं पड़ी.


बाजरा-मक्का-ज्वार के फायदे

अब इस कहानी का दूसरा पहलू देखिये, जो तथ्यों से भरा है.
१.     दुनिया भर में शोध का निष्कर्ष यह निकला है कि मोटा अनाज(बाजरा-मक्का-ज्वार) स्वास्थ्य के लिए ज्यादा हितकारी है. गेहूं या चावल तो महज घासफूस हैं, जिनसे भूख मिटाई जा सकती है, लेकिन मोटे अनाज स्वास्थ्य के लिए आवश्यक कई पोषक तत्त्व भी प्रदान करते हैं. ये केवल पेट ही नहीं भरते हैं, बल्कि स्वास्थ्य का प्रबंध भी करते हैं.
२.     मोटे अनाज में फाइबर या रेशों की मात्रा गेहूं या चावल के अपेक्षा अधिक होती है. इसके कई फायदे हैं. इन रेशों के कारण पेट अधिक समय तक भरा सा लगता है, जिससे पुनः भूख देरी से लगती है. बार बार खाने को मन नहीं नहीं करता है. ऐसा होने पर मोटापा अपने आप कम हो जाता है ! इस फाइबर के कारण ही शरीर में शक्कर का पाचन भी धीरे धीरे होता है, जिससे मधुमेह (डायबीटीज) का नियंत्रण आसान हो जाता है.
वहीं फाइबर के कारण एसिडिटी या पेट की जलन भी कम हो जाती है और अल्सर नहीं बन पता है. मोटा अनाज खाने से कब्ज से भी छुटकारा मिल जाता है, क्योंकि फाइबर पानी को सोखकर आँतों को चलायमान रखता है. आप तो अभी इसका उल्टा मान बैठे हो. मोटे अनाज से कब्जी नहीं होती है, बल्कि कब्जी दूर होती है, यह वैज्ञानिक तथ्य है. कब्जी तो गेहूं के कारण अधिक होती है. गेहूं में एक चिपचिपा पदार्थ ‘ग्लूटेन’ होता है, जो आंतों से चिपकता है. आपने गेहूं की लेई को कभी गोंद की तरह काम में लिया होगा. यही नहीं, मोटे अनाज का फाइबर पाइल्स, केंसर, टी बी और उच्च रक्तचाप( बी पी) को भी नियंत्रित कर लेता है.
३.     मोटे अनाज में लवणों और पोषक तत्त्वों का प्रतिशत भी गेहूं-चावल से अधिक होता है. पोटेशियम, केल्सियम, मैन्गनीशियम,ताम्बा, जस्ता ,फोस्फोरस और सोडियम की मात्रा मोटे अनाजों में अधिक होती है. केल्शियम और फोस्फोरस के कारण हड्डियां मजबूत रहती हैं. मोटा अनाज खाने वालों की हड्डियां बुढापे में आसानी से नहीं चटकती हैं ! कि बाथरूम में फिसले और हड्डी टूट गई. दूसरी और मोटे अनाज में लोहे का अंश भी अपेक्षाकृत अधिक होने से अनीमिया या रक्त अल्पता की बीमारी से बचाव हो जाता है.
४.     शरीर की नाड़ियों (नर्व्स) के लिए आवश्यक विटामिन बी (बी १ से बी १२) के विभिन्न अवयवों की मात्रा भी मोटे अनाजों में अधिक होती है. इनके अलावा विटामिन ए, डी और ई भी मोटे अनाज पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध करवाते हैं. विटामिन ए से आँखों की रोशनी ठीक रहती है, डी से हड्डियां ठीक रहती हैं, तो विटामिन ई से चमड़ी की चमक बनी रहती है और चर्मरोग कम होते हैं. बीमारियों से सक्षमता से लड़ने में मुख्य भूमिका निभाने वाले अमीनो एसिड्स भी मोटे अनाज में ही अधिक मिलते हैं. बाजरे में तो १३ प्रकार के अमीनो एसिड्स मिलते हैं, जबकि गेहूं में केवल दो अमीनो एसिड्स !
५.     फाइटोकेमिकल्स की मोटे अनाज में उपस्थिति के कारण रक्त में कोलेस्ट्रोल की मात्रा भी कम रहती है. यानि कोलेस्ट्रोल के रक्त की धमनियों में जमने और उसके कारण हार्ट या दिल का दौरा पड़ने की शंका कम हो जाती है. वहीं मोटे अनाजों में असंतृप्त वसीय अम्लों (फेटी एसिड्स) के कारण ऊर्जा तो ज्यादा मिल जाती है, लेकिन वसा या फेट जमा होने का यानि मोटे होने का खतरा कम हो जाता है. यह तो केवल  मोटा अनाज कहलाता है, इससे मोटापा नहीं बढ़ता है !
६.     मोटे अनाज से शरीर को ऊर्जा अपेक्षाकृत अधिक मिलती है. १०० ग्राम गेहूं या चावल की बजाय १०० ग्राम बाजरा-मक्का-ज्वार-जौ से अधिक ऊर्जा मिलती है. कम मात्रा में खाने पर भी ऊर्जा ज्यादा मिलती है. कोस्ट इफेक्टिव ?
७.     आयुर्वेद, जो स्वास्थ्य की विज्ञान है, भी कहती है कि किसी व्यक्ति के जन्म स्थान के आस पास पैदा होने वाला अनाज ही उसके स्वास्थ्य के लिए अनुकूल होता है. वही अनाज उसे आसानी से पचता है. और राजस्थान में तो मोटे अनाज ही प्राकृतिक हैं. यह प्राकृतिक संतुलन का नियम भी है.
स्वस्थ और समृद्ध राजस्थान की राह

यह सब फायदे समझने के बाद आप कम ऊर्जा और कम तत्त्वों वाले चावल या गेहूं को क्यों पसंद करेंगे ? क्यों केवल एक आदत के कारण अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करेंगे ? और अगर ऐसा नहीं करेंगे और बाजरा-मक्का-ज्वार-जौ को अपने खाने में प्रमुखता दे देंगे तो,
१.     आप अधिक स्वस्थ रहेंगे. बीमारियों से लड़ने की आपमें अधिक क्षमता होगी. आप स्वस्थ रहेंगे तो काम भी अच्छे से करेंगे, जिससे घर की अर्थव्यवस्था को सहारा मिलेगा. बीमारियों पर खर्च कम होगा.
२.     मोटे अनाज की मांग बढ़ने से हमारे किसानों को भी इनके अच्छे दाम मिलेंगे और वे इन अनाजों को अधिक बोयेंगे. उन्हें मोटे अनाज को बेचने की चिंता नहीं रहेगी. उनकी यह चिंता मिटानी जरूरी है क्योंकि बरसात पर आधारित इन अनाजों के उत्पादन में ही राजस्थान की जीत है. राजस्थान के पश्चिम और उत्तर में बाजरा, पूर्व में ज्वार और दक्षिण में मक्का की फसलें पानी की मात्रा और मिट्टी के स्वभाव के अनुरूप होते हैं. कम बरसात और भूजल की कमी के कारण हमारी प्रकृति इन मोटे अनाजों के ही अनुकूल है.
पिछले कई बरसों से हम जमीन से पानी निकाल कर अधिक पानी की फसल गेहूं को उगाकर वैसे भी डार्क जोन या भूजल के खतरनाक स्तर वाले क्षेत्र के रूप में पहचाने जाने लगे हैं. भूजल खत्म होने के कगार पर है या अत्यधिक खारा हो चला है. नहरी पानी में चावल की खेती से भी हमने अपनी जमीन को दलदली(सेम) कर लिया है. कब तक हम यह आत्मघाती खेती करेंगे और क्यों ? इसलिए अब हमें अपनी प्रकृति के साथ चलकर अगली पीढ़ियों  का ध्यान करना है. उनको बर्बाद गुलिस्तां देकर नहीं जाना है.
३.     एक और आर्थिक पहलू भी देखिये. गेहूं और चावल को उगाने में अधिक पानी तो लगता ही है, प्रदेश की जनता का पैसा भी प्रदेश से बाहर जाता है. बाजार में बाहर से आया आटा या राशन की दुकानों पर मिलता बाहर का गेहूं हमारी पूंजी को भी तो बाहर जाने पर मजबूर करता है. अब ऑस्ट्रेलिया का सड़ा सा गेहूं खाकर हमारे गरीब बंधु, शरीर और पैसे का बेवजह नुकसान कर रहे हैं न, जबकि हमारे पौष्टिक बाजरा-मक्का-ज्वार बाजार में बिकने को तरस रहे हैं. कितनी विडम्बना है ?
‘अभिनव राजस्थान’ में विकास के लिए उत्पादन बढाने पर जोर रहेगा और उसमें भी वह उत्पादन बढ़ाना हमारा लक्ष्य रहेगा जो हमारी प्रकृति के अनुकूल हो. बस इसके लिए हमें अपने नागरिकों को तैयार करना होगा ताकि वे विकास के इस मॉडल को मन से अपना सकें. अब देखिये न कि गेहूं या चावल से मोटे अनाज की तरफ प्रदेश की जनता को मोड़ते ही हमारी अर्थव्यवस्था कैसे मजबूत हो जायेगी. ऐसा ही दूसरे क्षेत्रों में करेंगे तो हमारे उत्पादन की स्थानीय खपत, प्रदेश में पूंजी के भण्डार भर देगी. पैसा प्रदेश में रहना शुरू होना ही पूंजी बनना होता है.
ऐसे में यहाँ जनकवि कन्हैयालाल सेठिया के गीत ‘धरती धोरां री’ के बोल फिर गूंजेंगे- ‘लुल लुल बाजरियो लहरावे, मक्की झालो दे’र बुलावे, कुदरत दोन्यूं हाथ लुटावे, धरती धोरां री, धरती धोरां री’. और रेडियो टी वी पर ‘बाजरिया थारो खिचडो, लागे घणों सुवाद’ भी लोकप्रिय हो जायेगा. ज्वार की ‘राबड़ी’ और मक्की की ‘घाट’ हर घर की रसोई को महकायेगी.  

About Dr.Ashok Choudhary

नाम : डॉ. अशोक चौधरी पता : सी-14, गाँधी नगर, मेडता सिटी , जिला – नागौर (राजस्थान) फोन नम्बर : +91-94141-18995 ईमेल : ashokakeli@gmail.com

यह भी जांचें

इस वर्ष जिस समय बुवाई हुई थी, तब तारामीरा का भाव लगभग….

इस वर्ष जिस समय बुवाई हुई थी, तब तारामीरा का भाव लगभग 7 और चने …

2 comments

  1. सब सू पहला तो आप सभी ने म्हारो राम राम, म्हारो नाम जय बिश्नोई है,म्हैं राजस्थान रे बीकानेर जिल्ला रो निवासीहूं. समय रे लारे लारे इन्सान शुरू सु ही बदलतो आयो है, आज रा जुग में हिंदी और अंग्रेजी भाषा रो ज्ञान होनो जरुरी है, पर इण रे लारे आपणी मायड़ भाषा रो ज्ञान होणो भी उतनों ही जरुरी है, राजस्थानी भासा सूंम्हनै ठेठ सूं ही बड़ो लगाव रह्‌यौ है, म्हारी आप सबसूं विणती है कै, मायड़ भाषा ने खूब वापरौ, अब टेम आ गयो है की राजस्थानी भाषा सू जुड़ीया हर लेख, फ़िल्म, पुस्तक और पत्र पत्रिका ने आपालोग ज्यादा सु ज्यादा मान देवां, नी तो वो टेमघणो जल्दी आबा वालों हे, जद आपा आपणी आबा वालीपीढ़ी ने कहांगा के बेटा कदी इण राजस्थान री भी आपणी अलग भाषा वेती ही, तो अस्या दन नी देखना पड़े इण लिए आपा ज्यादा सु ज्यादा राजस्थानी भाषा रो लिखण और बोलण में उपयोग लेंवा! आपणे इण देस मे टेम टेम पे कुछ एसो भी होतो रहवे है, जिण सु म्हे व्यक्तिगत रूप सु सहमत नहीं हु बस आ बात ही म्हे आपणी भाषा मे आप लोगा रे बिच राखनो चाहू।

  2. ज्वार,बाजरा मक्का का सेवन हार्ट संबंधि बिमारीयां एवं मधुमेह का एक बेहतरीन ईलाज है।छः माह लगातार खाने से इन बिमारियो से काफी हद नियंत्रण पाया जा सकता है।आपको बेहतर स्वास्थ तो मिलेगा ही ,मेडिकल बिल भी कम होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *