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शिवचरण माथुर आयोग की रिपोर्ट, बदल देगी ‘नेतागिरी’ के मायने

रिपोर्ट को लागू करवाने के हमारे प्रयास, रिपोर्ट लागू हो जाने पर नेता नहीं कर पायेंगे “तबादले”

मई 1999 में राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे स्व. शिवचरण माथुर की अध्यक्षता में एक प्रशासनिक सुधार आयोग गठित हुआ था. तब अशोक गहलोत मुख्यमंत्री थे. माथुर ने अपनी रिपोर्ट अप्रैल 2000 में सरकार को सौंप दी थी. माथुर ने राजस्थान के प्रशासन को जनहितैषी और विकासोन्मुख बनाने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण अनुशंसाएं की. अगर यह काम हो जाता, उनकी बातों को माँ लिया जाता, तो आज राजस्थान पिछड़ेपन के दाग को धोकर भारत के अग्रणी राज्यों में शामिल हो जाता. लेकिन अशोक गहलोत ने उस समय तीन मंत्रियों की समिति को इस रिपोर्ट की छानबीन का काम सौंप कर वही किया जो आज तक प्रत्येक आयोग या समिति के सुझावों के साथ होता आया है. इस समिति को सुधार के सुझावों को ठन्डे बसते में डालना था और वह काम हो गया. पहले भी राजस्थान में प्रशासनिक सुधार के लिए बने एच. सी. माथुर आयोग(1963) और जी.के. भानोत आयोग(1994) के साथ यही किया जा चुका था. क्यों ? क्योंकि सभी आयोग जनता के प्रति शासन को संवेदनशील बनाने की बात कहते थे. ये आयोग राजनेताओं का तबादलों में दखल कम चाहते थे. और राजनेता तबादले का चस्का छोड़ना नहीं चाहते. उनके मजे भी हो रखे हैं क्योंकि राजस्थान की जनता(पढ़े लिखों और कर्मचारियों सहित) भी उदासीन और डरी हुई बैठी है.


लेकिन अब यह बीड़ा ‘अभिनव राजस्थान अभियान’ ने उठाया है. शिवचरण माथुर आयोग की रिपोर्ट और उस पर की गई कार्यवाही के बारे में सभी कागजात हमने ‘सूचना के अधिकार’ के तहत प्रशासनिक सुधार विभाग से चाहे हैं. उनका निमंत्र आते ही हम निरीक्षण कर सारे कागजात ले आयेंगे. आपको ताज्जुब होगा कि राजस्थान में प्रशसनिक सुधारों के लिए भी एक विभाग है ! पता नहीं कौनसे सुधार कर रहा है ? हमने सोचा चलो इस विभाग को काम पर लगाते हैं.हम सारे आवश्यक कागज़ लेकर राजस्थान उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका लगा रहे हैं. देखते हैं कि ईश्वर हमें कितनी सफलता देता है.देखते हैं कि कर्मचारियों और अधिकारियों को हम तबादले के डर से आजादी कब दिला पाते हैं.

रिपोर्ट में कुछ ख़ास बातें ये हैं. ध्यान से पढियेगा.


  1. प्रदेश में एक स्पष्ट तबादला या स्थानान्तरण नीति बननी चाहिए. किसी भी कर्मचारी या अफसर को ‘यूं ही’ किसी नेता के चाहने पर (डिजायर पर)कैसे परेशान किया जा सकता है? क्या वे इस देश में दोयम दर्जे के नागरिक हैं जिनको अपने परिवार के साथ एक स्थान पर निश्चित समय तक काम करने का अधिकार नहीं है ? क्या एक नेता, जिसकी डिजायर पर तबादले होते हैं, पहले दर्जे का नागरिक है ? अगर नागरिकता में फर्क नहीं है तो यह नाटक कब तक चलेगा ? कब तक इन नए सामंतों का आतंक कर्मचारी-अधिकारी झेलेंगे ? और यह क्या जुमला है-‘प्रशासनिक कारणों से’ ? कैसे प्रशासनिक कारण हैं जो कर्मचारी या अधिकारी को परेशान करने में काम आते हैं. कारण स्पष्ट होने चाहियें. अगर कर्मचारी-अधिकारी कोई गलती भी करता है तो उसे अमुक स्थान से हटाया कैसे जा सकता है ? तबादला कोई सजा थोड़े ही है ? गलती की है तो विभाग जांच करे और सजा दे. लेकिन तबादले के नाम पर पूरे परिवार को सजा देकर मानवाधिकारों का उल्लंघन क्यों हो रहा है ? क्या यही लोकतंत्र है ? या तानाशाही है ?

  2. आयोग ने आगे कहा है कि अध्यापकों, व्याख्याताओं, चिकित्सकों और नर्सों के काम को स्थानान्तरण से मुक्त रखना चाहिए, नॉन-ट्रांसफरेबल रखना चाहिए. उनका ट्रांसफर तभी हो जब वे खुद चाहें और रिक्त स्थान हो. इससे राजस्थान जैसे बड़े प्रदेश में शिक्षा और स्वास्थ्य की सेवाओं में स्थायीत्व आएगा और सुधार भी होगा. शिक्षक और चिकित्सक सेवाभाव से और बिना दबाव के कार्य कर पायेंगे.

  3. माथुर आयोग ने पुलिस और राजस्व विभाग में भी कई सुधारों के लिए अच्छे सुझाव दिए हैं जिनके लागू होने पर इन विभागों की कार्यशैली में भी बड़े बदलाव आयेंगे. आयोग ने कहा है कि किसी भी आई.ए.एस. के अधिकारी को नौ साल की सेवा से पहले जिले का कलेक्टर नहीं बनाना चाहिए. पर्याप्त अनुभव के बिना ये नए अधिकारी कई बार बचकानी हरकतें कर प्रशासन को भ्रमित कर देते हैं. आयोग ने यह भी कहा है कि पुलिस में जांच और कानून-व्यवस्था के काम अलग अलग होने चाहियें ताकि कानून को लागू करने में उसकी सक्षमता बढ़े.

अब हम बेसब्री से माथुर आयोग की रिपोर्ट और सम्बंधित कार्यवाही के कागजातों का इन्तजार कर रहे हैं जिससे हम न्यायालय में जाकर इस रिपोर्ट को लागू करवाने के प्रयास कर सकें.

आप सोचेंगे कि ऐसा हो गया और तबादलों में नेताओं का हस्तक्षेप बंद हो गया तो क्या होगा ? वही होगा जो लोकतंत्र में होना चाहिए. वही होगा जो हमारे संविधान निर्माताओं ने सोचा था. नेता यानि विधायिका या व्यवस्थापिका क्यों सीधे सीधे कार्यपालिका के मामलों में दखल दे ? संविधान में तो यही कहा गया था. नेता तो अब भी हमें चाहिए होंगे, पर उनका स्तर बदल जाएगा. वे नीतियाँ और योजनाएं बनायेंगे. पटवारियों या शिक्षकों का तबादला नहीं करते रहेंगे.वे अब भी समारोह में मुख्य अतिथि या अध्यक्ष बनेंगे पर अपनी योग्यता के कारण, पद के कारण नहीं और न ही कर्मचारियों में तबादलों की दहशत के कारण.
यानि राजनीति से लोकनीति की ‘अभिनव राजस्थान अभियान’ की यात्रा में यह एक महत्वपूर्ण मोड़ होगा और राजस्थान के विकास में भी इसे हम एक मील का पत्थर मानेंगे.

वन्दे मातरम.             

 शिवचरण माथुर आयोग की रिपोर्ट 
सचिवालय में प्रशासनिक सुधार विभाग में शिवचरण माथुर आयोग की रिपोर्ट और उस पर की गई कार्रवाई का निरीक्षण सूचना का अधिकार के अंतर्गत करते हुए डॉ. अशोक चौधरी


About Dr.Ashok Choudhary

नाम : डॉ. अशोक चौधरी पता : सी-14, गाँधी नगर, मेडता सिटी , जिला – नागौर (राजस्थान) फोन नम्बर : +91-94141-18995 ईमेल : ashokakeli@gmail.com

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