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आप भी भ्रष्ट हैं अगर …………

आमतौर पर लोग अपनी सुविधानुसार अच्छे बुरे को परिभाषित कर लेते हैं. कुछ भी कर वे दूसरों को बुरा साबित करने में कामयाब होना चाहते हैं. समाज के प्रभावी वर्ग या व्यक्ति अपने प्रस्तुतीकरण के जादू से सच को झूठ और झूठ को सच कहलवा देते हैं. धारणा ही गलत बना देते हैं. तथ्य चाहे जो कहें, आंकड़े चाहे जो कहें, धारणा बन गई तो बन गई. ऐसा ही भ्रष्टाचार के मामले में हुआ है. भ्रष्टाचार की परिभाषा को भी सीमित कर इसे केवल रिश्वतखोरी से जोड़ दिया गया है. यह धारणा बना दी है भारत में, कि केवल रिश्वत लेने वाला कर्मचारी-अधिकारी-नेता ही भ्रष्ट हो सकता है. ऐसा करके इस दायरे से अधिसंख्य भ्रष्टों को चतुराई से बाहर रख दिया गया है. और यही कारण है कि भारत से भ्रष्टाचार खत्म होता दिखाई नहीं दे रहा है. जब बीमारी की जड़ के बारे में, मूल के बारे में ही गलत धारणा बनी हुई है, तो ईलाज कैसे होगा. कभी कभार लक्षणों का दिखावे के ईलाज करने का नाटक करना ही आज हमारी समझ में उपचार नजर आ रहा है. अब नाटक तो नाटक है, थोड़ी देर के लिए हकीकत का भ्रम पैदा करना ही तो नाटक है. तो हकीकत क्या है ? हकीकत यह है कि भ्रष्टाचार व्यापकता से भारतीय समाज में फैला है, जीवनचर्या में बसा है. इसके अनेक रूप हैं और उन रूपों को समझ कर ही हम इस समस्या का समाधान ढूंढ पायेंगे. कौनसे रूप हैं ? थोड़ी बानगी देखिये और जानिये कि कहीं आप और हम, सभी भ्रष्ट हैं या नहीं. इन्हें केवल तर्कों के तौर पर ही मत देखिये, इनके गहरे अर्थ और उसके प्रभाव को भी समझिए.
1. अगर आप एक व्यापारी या उद्योगपति हैं और शासन को वांछित कर देने में कोताही बरतते हैं, तो आप भी कम भ्रष्ट नहीं हैं. शासकीय खजाने को आप भी वैसा ही नुकसान पहुंचा रहे हैं, जैसा कोई कर्मचारी-अधिकारी. आप उसको चोर चोर कहकर हल्ला कर रहे हैं, पर आपकी चोरी भी उससे कम नहीं है. बल्कि आंकड़े जुटाएंगे तो आपकी चोरी के सामने उसकी चोरी तो आटे में नमक जैसी दिखाई देगी. आप तो पूरी नमक की रोटी बनाने पर तुले हैं और जनता द्वारा दिए गए टेक्स का दस प्रतिशत भी खजाने में नहीं पहुंचा रहे हैं. यानि नब्बे प्रतिशत राशि हजम कर रहे हैं ! बेचारा, हाँ बेचारा कर्मचारी या अधिकारी तो दस-बीस प्रतिशत में ही चोर बना बैठा है, जेल जा रहा है और आप ‘सम्माननीय’ ‘गणमान्य’ बने बैठे हैं.
2. अगर आप एक किसान हैं और खेत में जाने के नाम से ही आपको परहेज है, तो आप भी कम भ्रष्ट नहीं हैं. यह खेत आपको शासन ने खेती के लिए किराए पर दे रखा है ताकि देश-प्रदेश का उत्पादन बढ़े. लेकिन आप काम नहीं कर रहे हैं और इसके कारण खजाने को नुकसान हो रहा है. आपके इस भ्रष्ट आचरण से प्रदेश-देश में धन की कमी हो रही है, क्योंकि धन तो उत्पादन से ही आएगा. इसलिए भ्रष्ट अधिकारियों पर भाषण देने से पहले आप अपने गिरेबान में भी झांकते रहेंगे, तो शायद आपके कदम भी खेत की तरफ बढ़ेंगे. तब आप इधर उधर समय खराब करने और ताशें खेलने से बचने का जतन करेंगे. आप काम नहीं करने के बहाने भी नहीं करेंगे.
3. अगर आप एक शिक्षक हैं और आप नियमित कक्षाएं नहीं ले रहे हैं, तो आप भी भ्रष्ट आचरण कर रहे हैं. अपने ज्ञान और सामर्थ्य का पूरा उपयोग नहीं कर रहें तो आप भी भ्रष्ट ही हैं. आपको समाज इस बात के लिए पैसे दे रहा है कि आप समाज और देश के हित में काबिल नागरिकों का निर्माण करें. लेकिन आप कोई न कोई बहाना कर अपने कर्त्तव्य से बच रहे हैं, तो आपके आचरण को भी सही नहीं ठहराया जा सकता है. तब आपका दोष तो एक भ्रष्ट (रिश्वतखोर) कर्मचारी से कहीं ज्यादा है, क्योंकि यह कर्मचारी तो आप ही ने तैयार किया है. आपको कोई अधिकार नहीं है कि किसी रिश्वतखोर के पकड़े जाने पर आप अखबार को चटकारे ले लेकर पढ़ें. अपनी स्कूल के भीतर झांककर अखबार पढ़िए. सार्थक रहेगा.
4. अगर आप एक विद्यार्थी हैं और अपने अध्ययन पर ध्यान नहीं दे रहे हैं तो आप भी परिवार के धन का दुरूपयोग कर रहे हैं. आपको परिवार की कमाई में से पैसा इसलिए दिया जा रहा है कि आप अच्छी शिक्षा प्राप्त करें और परिवार, समाज और देशहित में अपने आपको तैयार करें. लेकिन आप अपना समय और पैसा, इधर उधर की फिजूल चीजों में खराब कर रहे हैं, तो आपका आचरण भी कम भ्रष्ट नहीं है. आप दिनभर मोबाइल से चिपके रहें या क्रिकेट में डूबे रहें, इससे आपके परिवार या समाज को आप नुकसान ही कर रहे हैं. आपकी ये हरकतें भी गैरजिम्मेदार नेताओं या भ्रष्ट अधिकारियों से कम बुरी नहीं हैं.
5. अगर आप एक परिवार के मुखिया हैं और आप परिवार की आमदनी से अधिक खर्च, केवल दिखावे और समाज की झूठी परम्पराओं के नाम पर कर रहे हैं, तो आप भी निहायत भ्रष्ट व्यक्ति हैं. आप शादी में या किसी परिजन की मौत पर अनाप शनाप खर्च कर रहे हैं, तो क्या कर रहे हैं ? आप अपने परिवार का भविष्य अन्धकार में धकेल रहे हैं. आप परिवार की पूंजी नष्ट कर रहे हैं, क्योंकि पूंजी बचत से बनती है. आमदनी से अधिक खर्च से बचत हो नहीं पायेगी और पूंजी नहीं बन पायेगी. जबकि इस पूंजी से ही परिवार का विकास संभव होता है. इस पूंजी से ही परिवार में रोजगार मिलेगा, धंधा कर पायेंगे, बच्चों को भरपूर शिक्षा दे पायेंगे, परिवार का रहन सहन सुधार पायेंगे. इस पूंजी से ही प्रदेश और देश का विकास भी होता है. परिवारों के पास पूंजी नहीं होगी तो प्रदेश के पास पैसे कहां से आयेगे. प्रदेश का अर्थ सभी परिवारों का जोड़ ही तो है. लेकिन अपने पथभ्रष्ट आचरण से आप परिवार, प्रदेश और देश के खजाने को नुकसान कर रहे हैं और हमें पूंजी उधार लेकर इन्हें चलाना पड़ रहा है. यह नुकसान भी कम नहीं है.
यानि कहा जा सकता है कि भ्रष्टाचार के कई आयाम हैं, कई रूप हैं. पर समाधान भी इतने सीधे नहीं है कि हम कह दें कि भ्रष्टाचारियों को फांसी दे दें या जेल में भेज दें. हालांकि रिश्वतखोरी पर लगाम के वर्तमान कानून और कड़े किये जाने चाहिए, पर यही काफी नहीं है. पहले भ्रष्टाचार को परिभाषित तो कर लें, इसकी जड़ पकड़ लें. तब शायद हम समाधान की तरफ स्थाई कदम बढ़ा सकेंगे. तब हम देखेंगे कि समाज में पैसे, पद, दिखावे, खर्च का जरूरत से ज्यादा महत्व कहीं इसकी जड़ में है. या कहिये कि सादगी, बचत, ज्ञान और कला का मूल्य कम होना लोगों को पैसे की तरफ धकेल रहा है. जब समाज पैसे को ही सब कुछ मानता है तो अधिकतर लोग ‘कुछ भी’ करके समाज की नज़रों में खरा उतरने के चक्कर में अपना आचरण भ्रष्ट कर बैठते हैं.

‘अभिनव राजस्थान अभियान’ भ्रष्टाचार को इसी समग्रता में देखता है और इसका समाधान भी इसी रास्ते से चाहता है, ताकि स्थायी हल निकल सके. यही कारण है कि सामाजिक मूल्यों को बदलना ‘अभिनव समाज’ का मुख्य उद्धेश्य है. समाज के मूल्य बदलते ही, समाज का मंच बदलते ही भ्रष्टाचार का आकर्षण ही खत्म हो जाएगा. फिर से राजस्थान में, भारत में सादगी, ज्ञान और कला का महत्त्व बढ़ जाएगा. हाँ, ऐसे भारत में पैसा भी खूब होगा और वह जरूरी भी है, पर वह पैसा भ्रष्ट आचरण से नहीं आएगा, बल्कि मेहनत, बचत और समर्पण से आएगा. तब भी पांच प्रतिशत लोग रिश्वतखोरी करेंगे. उनके लिए कड़े कानून होंगे.   वंदे मातरम !    

About Dr.Ashok Choudhary

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