Home / हमारे जिले / अलवर जिला

अलवर जिला

अरावली की पहाड़ियों की गोद में बसा अलवर जिला भारत के इतिहास के कई सुनहरे पन्नों का साक्षी रहा है। जब भारत में १६ महाजनपद थे, तब उनमें से एक महाजनपद था,मत्स्य जनपद, जिसकी राजधानी बैराठ(जयपुर) थी। वर्तमान अलवर जिले का संपूर्ण क्षेत्र इस महाजनपद में शामिल था। अन्य क्षेत्रों में वर्तमान जयपुर, दौसा और भरतपुर जिले थे। भौगोलिक द्रष्टि से बाणगंगा नदी के पूर्व का क्षेत्र ही मत्स्य महाजनपद कहलाता था। इसके उत्तर-पूर्व में कुरु महाजनपद था, जिसकी राजधानी-इन्द्रप्रस्थ या वर्तमान दिल्ली थी, तो दक्षिण पूर्व में सुरसेन महाजनपद था, जिसकी राजधानी मथुरा थी। साल्वों का मत्स्य, कौरवों का कुरु और यदुवंशियों का सुरसेन। यमुना और बाणगंगा के बीच के इन क्षेत्रों को आप ऐसे समझें और यह भी ध्यान दें कि महाभारत के काल में राजा विराट(मत्स्य), कौरवों और कृष्ण के राज्य कैसे एक दूसरे से जुड़े थे। इस मत्स्य जनपद के लोगों को तब साल्व कहते थे, जैसे अवंति(मालवा) जनपद के लोगों को माल्व कहते थे। इन साल्वों के नाम पर यह क्षेत्र साल्वर कहलाता था, जो कालांतर में सल्वर और अपभ्रंशित होते-होते अलवर बन गया।
मत्स्य जनपद में पहाड़ियों के बीच बीच में उपजाऊ मैदान थे, जो उस समय के शासनों की मजबूती के लिए आवश्यक थे। बाणगंगा और रूपारेल नदियां इन मैदानों को सींचती थीं। यहाँ के लोग मछली (मत्स्य) को अपने वंश का चिह्न मानते थे, जैसे अन्य लोग नाग को, चन्द्रमा को, सूर्य को या अग्नि को मानते थे। इसी कारण इन्हें बाद में मीना या मीणा भी कहा जाने लगा था। जी हाँ, आज के मीणा ही मत्स्य जनपद के शासकों के वंशज हैं। मध्यकाल के इतिहासकारों ने तथ्यों को इतना तोड़ा मरोड़ा है कि लगता ही नहीं कि मीणा ही यहाँ के मूल शासक थे। ऐसा लगभग पूरे भारत के इतिहास में किया गया है लेकिन गलत धारणाओं को दोहराते रहने से और शोध की कमी से सच पर से कभी पर्दा ही नहीं उठा।
साल्वों और अन्य जनपदों के सम्बन्ध अच्छे रहे थे और इसी कारण कुरु जनपद के पांडव अज्ञातवास के दौरान इस क्षेत्र में खूब घूमे थे। पांडवों के इस क्षेत्र में निवास के कई चिह्न आज भी मौजूद हैं ,जो जन मानस में छाये हुए हैं। उनको लेकर कई कथाएँ भी हैं। पांडुपोल और ताल वृक्ष उसी दौर की कहानियों से अटे पड़े हैं। वहीँ माल्व जनपद के भ्रर्थरीकी भी तपोभूमि यहाँ रही है। अवंति के न्याय प्रिय शासक विक्रमादित्य के भाई भ्रर्थरी ने शासन का त्याग कर ऐसा उदाहरण दिया कि उनके नाम पर बने नाटक जनता में हरिश्चंद्र के नाटकों के बराबर लोकप्रिय हुए। भ्रर्थरी ने यहीं पर नीति शतक श्रृंगार शतकऔर वैराग्य शतक रचे थे।
मगध में मौर्यों के शासन के समय बौद्ध धर्म को यहाँ भी सम्मान दिया गया था और ऐसा बैराठ(अब जयपुर जिला) में मिले अवशेषों से ज्ञात होता है। गुप्तों और वर्धनों के शासन के बाद जब प्रतिहार शासन कन्नौज(उ.प्र.) से भीनमाल और मंडोर तक फैला था, तो मीनों ने उनका साथ दिया था। दिल्ली में अर्जुन के वंशज तोमरों(तंवरों) से भी इनके मधुर सम्बन्ध रहे। इसके बाद जब चौहान सत्ता दिल्ली तक फैली, तब मीने उनके भी सहयोगी बने थे। इस समय एक तरफ से नागवंशी प्रतिहार और चौहान, तो दूसरी तरफ से सूर्यवंशी तोमर और चंद्रवंशी यादव, मत्स्य क्षेत्र के मैदानी भागों पर नियंत्रण करने में लगे थे। इनके वंशज गुर्जर, जाट और यादवों के रूप में अपने शासन मैदानों में स्थापित करने लगे थे। मीने अरावली और विन्ध्य की पहाड़ियों में सिमटने लगे थे। फिर भी इन सब में एक स्वस्थ समन्वय था। दौसा का दोहरा शासन (गुर्जर+मीणा) इसका सशक्त उदाहरण था।
   इस सामाजिक-राजनैतिक समन्वय पर पर तभी एक नई ताकत ने वार किया। जयपुर के पास खो गंग के मीणा शासक अलंसी को धोखे से नरवर(म.प्र.) से उसकी शरण में आये दूल्हा कछवाह ने मार दिया। एक एक कर कच्छवाह सभी मीनों से शासन छिनते गए और इससे अलवर का दक्षिणी क्षेत्र भी अछूता नहीं रहा। तभी दिल्ली में बड़ा तख्ता पलट हुआ और वहाँ पश्चिम से आये सुल्तानों का राज कायम हो गया।
सल्तनत के समय यह क्षेत्र भी दिल्ली के अधीन हो गया। फिरोजशाह के समय जब स्थानीय मूल शासक जातियों को धर्म परिवर्तन करने पर राज में हिस्सा देने की पेशकश हुई तो इस क्षेत्र के यादवों ने पहल की और मेव बनकर राज पा ही लिया। ये खानजादेकहलाये। मीने तो तब तक शासन से हट ही चुके थे।उनका शासन अब जयपुर के आसपास ही बच गया था। इस क्षेत्र के मीने खेती में लग गए थे और जागीरदार बन गए।सल्तनत खत्म हुई तो मुग़ल आ गए। लेकिन इसी बीच मेवाड़ के राना सांगा ने भारत में स्थानीय शासन के लिए एक आखिरी कोशिश की। तब अलवर के हसन खां मेवाती ने उनका साथ दिया था और खानवा के युद्ध(१५२७) में वे भी शहीद हुए थे। उन्होंने इस जिहाद में भी धर्म के स्थान पर राष्ट्र को अधिक महत्व दिया था।
मुगलिया शासन में इस क्षेत्र पर मेव मुगलों के अधीन राज करते रहे। लेकिन मुगलों के कमजोर पड़ने पर कुछ समय के लिए यहाँ पर जाटों का शासन स्थापित हो गया। जाटों ने जयपुर के शासक माधोसिंह कच्छवाहा प्रथम के समय उनके दरबार से बेदखल किये गए माचेडी के प्रताप सिंह नरूका को अपने यहाँ शरण दे दी। नरूका (नरवरका यानि नरवर का) कछवाहों के ही वंशज थे। नरूका ने समय देखकर पाला बदल लिया और जयपुर के शासकों की मदद से १७७५ में अलवर का राज पाने में कामयाब हो गए। ध्यान रहे कि प्रतापसिंह नरूका ने १७७५ में अलवर में अपना शासन स्थापित किया था, न कि अलवर की स्थापना की थी। अलवर तो प्राचीन समय से ही स्थापित था। मेवों के राज में भी यहाँ पर बाला किला बन चुका था।
नरुकों का राज ठीक से जमा ही नहीं था कि मराठे राजस्थान का नाप तौल करने करने लगे थे।घबराये नरुकों ने १८०३ में अंग्रेजों से परस्पर मित्रता की संधि कर ली। राजस्थान में अंग्रेजों की यह पहली संधि थे। बाद में भरतपुर ने १८०५ में संधि की थी। १८१७ में नरुकों ने अंग्रेजों की अधीनता ही स्वीकार कर ली थी। और फिर निश्चिन्त होकर इन शासकों ने जमकर मौज मस्ती की। बख्तावर सिंह की मूसी रानी और विनय सिंह का वेश्याओं के चित्र बनवाना इस मौज के प्रमाण बने। लेकिन परदे के पीछे मेव दीवान ही अंग्रेजों के इशारे पर वास्तविक राज करते थे। फिर भी इन नरुकों ने देश आजाद होने तक अंग्रेजों की खूब सेवा और खुशामद की थी।
१४ मई १९२५को नीमूचना कांड में यहाँ पर पुलिस की गोली से ९५ राजपूत किसान मरे तो, जलियांवाला बाग कांड की यादें ताज़ा ही गयीं। १९३२-३३ में तो यहाँ के अय्याश शासक जयसिंह को अंग्रेजों ने कुप्रबंध के कारण देश निकाला ही दे दिया। जयसिंह पेरिस में शराब के अधिक सेवन के कारण चल बसे थे। इसके एक दशक बाद राजस्थान में देश की आज़ादी की गर्मी भी अलवर ने ही सबसे पहले महसूस की,जब फरवरी १९४८ में यहाँ के शासक तेजसिंह को दिल्ली में नजरबन्द कर उनसे विलय की संधि पर हस्ताक्षर करवा लिए गए। फिर १८ मार्च १९४८ को अलवर में ही मत्स्य संघ का उद्घाटन हो गया। कन्हैया लाल मुंशी ने अलवर क्षेत्र के प्राचीन महत्व को देखते हुए यह नाम रखा था। राजस्थान के एकीकरण का यह पहला चरण था। मत्स्य संघ में अलवर के साथ भरतपुर,धौलपुर, करौली रियासतें और नीमराना ठिकाना शामिल थे। केंद्रीय मंत्री वी.एन. गाडगिल ने इस संघ का उद्घाटन किया था। शोभाराम कुमावत इस संघ के प्रधानमंत्री बने थे, जबकि धौलपुर के शासक उदयभान सिंह को संघ का राज प्रमुख बनाया गया था। मई १९४९ में मत्स्य संघ का राजस्थान में विलय हो गया। अलवर अब एक जिला बन गया।
यहाँ के स्वतंत्रता सेनानियों में प्रमुख थे- पंडित सालगराम, इन्द्रसिंह आजाद, लक्ष्मण स्वरुप त्रिपाठी, पंडित भोलानाथ, हरिनारायण शर्मा, नथुराम मोदी,कुंजबिहारी लाल मोदी,शोभाराम कुमावत, कृपादयाल माथुर और रामचंद्र उपाध्याय।

About Dr.Ashok Choudhary

नाम : डॉ. अशोक चौधरी पता : सी-14, गाँधी नगर, मेडता सिटी , जिला – नागौर (राजस्थान) फोन नम्बर : +91-94141-18995 ईमेल : ashokakeli@gmail.com

यह भी जांचें

अभिनव अलवर, Star of Rajasthan…

(अभिनव जिलों में आज अलवर पर.) अभिनव अलवर, Star of Rajasthan. जिन मित्रों ने अलवर …

3 comments

  1. sariska abhyarany alwer mai sthit h

  2. isme app qustion banate to bahut acha rahata chhgan panwar jaisalmer 9950681407

  3. yogendra meena

    अच्छी गहन और तथ्यपरक जानकारी प्राप्त होती है! भाषा सरल और सहज है! धन्यवाद्!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *